Book Title: Bhagvana Neminath Diwakar Chitrakatha 020
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 17
________________ भगवान नेमिनाथ नेमिकुमार बोले श्रीकृष्ण तात ! दो देहों का मिलन तात ! जिसके मन में भोगों की रुचित कुमार ! मैं संसार की क्षणिक आनन्द के बाद होती है उसे संसार सुखमय लगता है, श्रेष्ठतम सुन्दरी से तुम्हारा दीर्घकाल तक दुःखदायी (किन्तु विरक्त आत्मा को तो ये भोग जहर विवाह कराना चाहता हूँ होता है, मैं तो उस मार्ग जिसे पाकर तुम संसार का पर चलना चाहता हूँ के समान कड़वे और कारागार के जिसमें सदा आनन्द ही तुल्य बंधन प्रतीत होते हैं? आनन्द भोग सको। आनन्द हो। (S AD 15906 श्रीकृष्ण ने सोचा (नेमिकुमार संसार से विरक्त हैं। इन्हें राजा (विवाह के लिए मनाना रे सरल नहीं श्रीकृष्ण इसी विषय में सोचते हुए अपने महलों में आ गये। सत्यभामा, रुक्मिणी आदि ने पूछा स्वामी ! आज आप -विचार-मग्न दिख रहे हैं। क्या बात है? 4 SaritraMENSHI 1000000000कर An Ipomaramnoonjागन 4005 geOOD श्रीकृष्ण हँसकर बोले ज्येष्ठ पिता समुद्रविजय जी आदि सब की इच्छा है कि नेमिकुमार को विवाह के लिए मनायें, परन्तु वह नहीं मान रहे हैं। सत्यभामा हँसकर बोलीयह काम हम पर छोड़ दीजिये ! मेरी छोटी बहन राजीमती का अद्भुत रूप-सौन्दर्य देखकर नेमिकुमार अवश्य राजी हो जायेंगे। TA Education International 13 For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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