Book Title: Bhagvana Neminath Diwakar Chitrakatha 020
Author(s): Purnachandravijay, Shreechand Surana
Publisher: Diwakar Prakashan

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Page 22
________________ भगवान नेमिनाथ नेमिकुमार भावविह्वल स्वर में बोले'देखो वह मूक हरिण आँखों में आंसू भरकर पूछ रहा है।। HOPEN में आंसू भटकट पूछ रहा है। स्वामी, हमने आपका क्या अपराध किया, हम निर्दोषों को किसलिए मरवा रहे हो? इनके करुण स्वर मेरे कानों में गूंज रहे हैं, मेरा हृदय द्रवित हो रहा है। We 99 COOOO सारथि ने अत्यन्त द्रवित कुमार की तरफ देखा कुमार ! आप इन पशुओं के लिए इतने चिन्तित न होवें, इनकी तो यही होनहार है। नेमिकुमार बोले नहीं सारथि ! पहले जाओ, बाड़े में बंद इन पशुओं को मुक्त करो, इनके । ऑसू नहीं देखे जाते। इनकी छटपटाहट मेरे मन में टीस पैदा कर रही है। ANCE Pur सारथि ने हाथी से उतर कर बाड़े का दरवाजा खोल दिया। बंद पशु हिरण, भेड़, बकरियाँ, खरगोश छलाँग मारकर भागने लगे। पशुओं को मुक्त हुआ देखकर नेमिकुमार प्रसन्न हो उठे। PEN T AR 4 R - उन्होंने प्रसन्न होकर सारथि को अपने हार, कुंडल आदि आभूषण उतारकर दे दिये और हाथी को वापस द्वारका की तरफ मोड़ लिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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