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अनेको यात्री भी थे । गीतकाल होने से यात्रियो ने आग जलाई। प्रात • काल होने पर आग को विना वुझाए ही वे चले गए। जोर की हवा चली, पास मे रक्खे मूखे घास मे आग लग गई, उसकी लपटें भगवान के निकट भी जा पहुची, परिणाम स्वरूप भगवान के पाव झुलस गए। परन्तु सहिष्णुता के सागर प्रभु फिर भी ध्यानावस्थित ही रहे। वे अग्निजन्य परीपह से रत्ती भर भी चलायमान नहीं हुए। अनार्य देश में संकटों की प्राधियां :
भगवान महावीर अव लाढ नामक अनार्य देश मे पधारे। यहा उन्हे हृदय को कपा देने वाले कप्टो का सामना करना पड़ा। अनार्यदेग मे प्रभु को रहने के लिये अनुकूल स्थान नहीं मिलता था, अनार्य लोग इनके पीछे शिकारी कुत्ते लगा देते थे, जो उनके शरीर से मांस के लोथडे निकाल लेते थे। कही पर उन्हे दण्डो, भालो, पत्थरों और ढेलो के प्रहार सहन करने पडते थे। भगवान को लहूलुहान कर देने पर अनार्य लोग दूब हमने, तालियां पीटते । कही पर भगवान को ऊपर उछालउछाल कर गेन्द्र की तरह पटका जाता, परन्त क्षमा-भूति भगवान इन सव सकटो को कर्म-भोग समझ कर गान्त-भाव से सहन करते रहे थे। वे मन से भी कभी किमी का अनिष्ट नही सोचते थे । पाचवां चातुर्मास :
इस तरह भगवान लोम-हर्षक कष्टो को सहन करते हुए मलयदेश की राजधानी भद्दिलनगरी मे आए और पाचवा चातुर्मास यही पर व्यतीत किया। इस चातुर्मास मे प्रभु ने लगातार चार महीने तपस्या में ही व्यतीत किये और चातुर्मास के पश्चात् नगरी के वाहिर प्रभु ने पारणा किया। पारणा करने के अनन्तर जव प्रभु ने विहार किया तो मार्ग मे इनको जासूस समझ कर पकड लिया गया और उनकी बुरी तरह पिटाई की गई। साथ मे गोशालक को भी वडी निर्दयता से पीटा गया। गोशालक तो स्थान-स्थान पर ही अपनी भूलो के कारण प्राय मार ४ कल्पसून के हिन्दी-टीकाकार लिखते है -
प्रभु के पैरो को चूल्हा बनाकर, प्राग जलाकर उस पर खीर पकाई, प्रभू व्यानमुद्रा मे अचल रहे अत उनके पैर जल गए। -पृष्ठ ७७
[दीक्षा-कल्याणक