Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 195
________________ ५६ बल थामं च पेहाए, सङ्ग्रामारुरगमप्पणो । खेतं कालं च विन्नाय, तहप्पाण निजुंजए । ८३५ ६०. काले कालं समायरे । ५१२२४ ६१ कुसीलवडणं ठाणं दूरश्रो परिवज्जए । ६१५९ ६२. थोव नधुं न खिसए । ८१२९ ६३ वीयं तं न समायरे । पञ्च-कल्याणक ] ८।३१ ६४. विजयमूले धम्मे पण्णत्ते । २1 ६५ ग्रहं अव्वए वि श्रहं श्रर्वाट्ठिए वि । १1९ ६६ धम्म-विसए वि सुहमा माया होइ प्रणत्याय । कोई भी कार्य करने से पहले छ बातो का ध्यान रखो - शारीरिक शक्ति, मनोवल, ग्रात्मविश्वाम, नैरोग्य, कार्य-क्षेत्र और कार्य का समय एव परिस्थितिया । ज्ञाता-धर्म-कथा 915 जो कार्य जिस समय करना चाहिए उसे उसी समय कर लेना चाहिए । दुराचारी वृत्ति को बढावा देने वाले स्थान से सदा दूर रहो । मन चाहा लाभ न होने पर झुझलाना नही चाहिए । जो भूल एक वार हो जाए उसे दुवारा मत होने दो । धर्म का मूल विनय ही है । आत्मा अव्यय है, अवस्थित अर्थात् अविनाशी है । धर्म - कार्य मे मामूली सा छलकपट भी महान् अनर्थ का कारण बन जाता है । १६३ ]

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