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८०. अह पचहि ठाणेहि अहकार, क्रोध, प्रमाद, और रोर
जेहि मिक्खा न लभई । आलस्य इन पाच के रहते हुए, थभा कोहा पमाएण शिक्षार्थी शिक्षा प्राप्त नहीं कर रोगेणालस्मएण वा सकता।
११३ ८१ पियकरे पियवाई सब के मनचाहे कार्य करनेवाला मे सिक्ख लधुमरिहा एक सवसे प्रिय वोलनेवाला
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अपनी अभीष्ट शिक्षा को प्राप्त
करने में सफल होता है। ८२ वेया अहीया न हवति ताणं पाठ करलेने मात्र से वेद तुम्हारी
१८११२ रक्षा नही कर सकते। ८३ जस्सत्यि मच्छणा मक्ख, जिसकी मृत्यु से मित्रता है, जो
जस्त अत्यि पलायण। मौत से भाग कर बच सकता जे जाणे न मरिस्सामि, है, जिसको विश्वास हो कि मैं सो हु कखे सुए सिया मरू गा, नही वही व्यक्ति कल का
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भरोसा कर सकता है। ८४. दन्तसोहणमाइस्स अदत्तस्स जिसने चोरी से बचने का व्रत विवज्जण
धारण कर लिया है वह और तो १९।२८
क्या दान्त साफ करने का एक तिनका भी विना पूछे नही
उठाता । ८५. सज्झाए वा निउत्तण स्वाध्याय करते रहने पर समस्त सबदुक्ख - विमोक्खणे दुःखो से छुटकारा मिल जाता है।
२६१० ८६ खमावणयाए ण पल्हायणभाव क्षमाभाव को अपनाने से प्रात्मा जणयइ
२६।१७ को प्रसन्नता की अनुभूति होती है। ८७ वेयावच्चेण तिथयर नाम-गोतं सेवा करके मनुष्य "तीर्थङ्कर"
निवन्वइ वनने योग्य कर्मों का उपार्जन
२९४३ कर लेता है। १६६]
महावीर-वचनामृत ]
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