Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 197
________________ ७२ वित्तेन ताणं न लभे पमते, इमम्मि लोए अदुवा परत्या १६।१४ ७३. खुड्डेह हासं ७४ बहुयं ७५. न ७६. सरिसो ७७ मत ७८. सह कोडं च सिया मा य होइ मएसु कुसग्गे जह योवं चिट्ठइ संसारंग वज्जए १९ तोत्त-गवेसए १४० श्रालवे १1१० पञ्च-कल्याणक ] बालाणं २१२४ प्रोसage, एवं लम्बमाणए मणयाण जीवियं, समयं गोयम ! मा पमायए १०१२ कप्पए ६१२ ७. दुल्हे खलु माणुसे भवे १०१४ इस संसार मे रहनेवाला कोई भी व्यक्ति धन के द्वारा अपनी सुरक्षा नही कर सकता, धन परलोक में भी जीव का रक्षक नही वन सकता | तुच्छ लोगो के साथ सम्पर्क, हसी मजाक और क्रीडा ग्रादि नही करनी चाहिए । बहुत नही बोलना चाहिए । दूसरो को बुराइयों की ओर मत देखो । बुरे के साथ बुरा व्यवहार करना बचपन है । समस्त प्राणियो से मित्रता का व्यवहार करो । जैसे हिलती हुई घास की नोक पर ओस की बूद कुछ समय तक ही ठहर सकती है, इसी प्रकार संसार मे जीवन भी कुछ समय तक ही ठहर सकता है, अत: गौतम । क्षण भर के लिये भी प्रमाद मत करो । - निश्चय ही मनुष्य जन्म का मिलना बहुत दुर्लभ है । १६५ }

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