Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 194
________________ दशवैकालिक ५१ धम्मो मंगलमुक्किट्ठ, अहिंसा सजमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो। ११ अहिंसा, सयम और तप ही धर्म है और धर्म ही उत्कृष्ट मगल है । जिसका मन धर्म में स्थिर हो जाता है देवता भी उसे नमस्कार करते हैं। ५२ कहं तु कुज्जा सामण्णं जो कामे न निवारए । जिसने अपनी इच्छा यो पर नियन्त्रण नहीं किया, भला वह व्यक्ति साधक बन कर साधना कैसे कर सकेगा। २१ ५३ कामे कमाही कमियं खु दुक्खं । जो इच्छायो को दूर कर देता है, उससे दुख स्वय हो दूर हो जाते २१५ ५४ जं सेयं तं समायरे । पर। जो कार्य श्रेयस्कारी हो उसीका आचरण करो। ४१११ ५५ दवदवस्स न गच्छेज्जा। जल्दी-जल्दी मत चलो-हर । कदम सोच-समझ कर उठायो । ५०१ ५६ हसंतो नाभिगच्छेज्जा । मार्ग मे चलते हुए मत हसो । ५२ ५७ सकिलेसकरं ठाण दूरग्रो परिवज्जए। जिस स्थान पर क्लेश की सम्भावना हो वहा से दूर ही रहना चाहिए। ५११६ ५८ - भूलमेयमहम्मस्समहादोस समुस्सयः । दुराचार ही अधर्म का मूल है और सभी बड़े पापो का उत्पत्ति-स्थान है। महावीर-वचनामृत] ६१६ १६२]

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