Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 192
________________ ३६ भोगी भोगे परिच्चयमाणे महा-णिज्जरे महापज्जवसाणे भवइ । भोगो को भोगने में समर्थ होते हुए भी जो भोगों का परित्याग कर देता है, वहीं कर्म-भार से छूट कर मोक्ष प्राप्त कर सकता है। ७७ ३७ एग इसि हणमाणे अणते जीवे हणइ । अहिंसा परायण एक मुनि की हिंसा करनेवाला एक प्रकार से अनन्त जीवो की हिंसा करता ९/३४ ३८. जीवियास-मरण-भय विप्प-मुक्का। ७ ३६ छत्तकडे दुखे, नो पर डे। १७.५ वही व्यक्ति महान है जो जीवन की आशा और मृत्यु का भय दोनो से मुक्त है। तुमने अपने लिये माप ही दुख उत्पन्न किए हैं, अन्य किसी ने नही। जो दूसरो को शान्ति देने का प्रयास करता है, वह स्वयं भी शान्ति पाता है। ४० समाहिकारए ण तमेव समाहिं पडिलन्भइ। ७.१ प्रश्न-व्याकरण-सूत्र १४ ४१ उवणमंति मरणधम्म वडे-बडे राजा महाराजा भी अवित्तत्ता कामाणं। भोग भोगते हुए तृप्त हुए विना ही मर गए, भोगो से कोई भी तृप्त नहीं हो सका। ४२ नत्थि एरिसो जसो पडिबंधो परिग्रह अर्थात् आवश्यकता अत्यि सव्वजीवाणं सवलोए। से अधिक सचय की वृत्ति के १५ समान कोई जाल नही- कोई वन्वन नही। १६० ] [ महावीर-वचनामृत

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