Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 190
________________ २३. न यानि पन्ने परिहास कृज्जा १११४११९ बुद्धिमान् वही है जो किसी का उपहास नहीं करता। स्थानांग-सूत्र २४. एगा अहम्मपडिमा ज से पाया परिकिलेसति ११ अधर्म-वृत्ति ही ऐसा विकार है, जिससे प्रात्मा-को कप्ट उठाने पडते हैं। सुकुल २५ तो ठाणाई देवे पोहेज्जा- देवता भी तीन बातो की माणुसं भवं, पारिये खेत्ते जम्म, इच्छा करते है-मनुष्य-जीवन, पच्चायांति आर्य-भूमि मे जन्म और श्रेष्ठ ३१३ कुल की प्राप्ति। २६. तो दुस्सन्नप्पा तीन व्यक्तियो को समझाया दुठे मूढे बुग्गहिए नहीं जा सकता-दुष्ट व्यक्ति ३४ को, मूर्ख व्यक्ति को और वहके हुए व्यक्ति को। २७. पध्वयराइसमाणं कोह, मणुपविठे जीवे कालं, करेइ मेरइएसु उववज्जइ ४१२ पर्वत की दरार के समान अमिट क्रोध व्यक्ति को नरक मे धकेल देता है। २८. चत्तारि अवायणिज्जा अविणीए, विगई पडिबद्धे, अविप्रोसित.. पाहुडे, माई चार व्यक्ति अध्ययन करने के योग्य नहीं होते-अविनीत चटोरा, झगडालू और कपटी। २६. चत्तारि घम्मदाराखती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे ४४ १५८ ] धर्म-मन्दिर के चार द्वार हैक्षमा, सन्तोष, सरल स्वभाव और नम्रता। [ महावीर-वचनामृत

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