Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 189
________________ १४. वाले पाहि मिज्जति १।२।२।२१ मूर्ख व्यक्ति अपने द्वारा किए हुए पाप-कर्म पर भी अभिमान करता १५. मा पच्छ प्रसाधुता भवे, भविष्य मे दुःखो से बचे रहो, अच्चेही अणुसास अप्पगं इसलिये अभी से अपने आप पर १२।३७ नियन्त्रण करो। १६ इणमेव खण वियाणिया । वर्तमान का क्षण ही महत्व पूर्ण हैं, १।२।३।१९ । अत. उसका सदुपयोग करलो । १७. जेहिं काले परक्तं जो समय पर अपना कार्य न पच्छा परितप्पए कर लेते हैं, वे वाद मे पछताते १३३१४१५ नही । १८. सयं सयं पसंसता, गरहता परं वयं, जे उ तत्य विउस्संति, संसार ते विउस्सिया ११।२।२३ जो अपनी या अपने मत की प्रशंसा करते हैं और दूसरो की तथा दूसरो के मत की निन्दा करते है, जो सत्य की उपेक्षा कर देते हैं, ऐसे ही लोग आवागमन के चक्र मे फसे रहते हैं। कभी किमी से लड़ाई-झगडा मत करो, लडाई झगडे से बहुत हानि होती है। १६. अठे परिहायतो बहुं, । अहिगरणं न करेज्ज पंडिए १।२।२।१९ २०. जहा कड कम्म तहासि भारे ११।२६ जैसा काम करोगे. वैसा ही फल भोगोगे । २१ दुक्खेण पुढे धूयमायएज्जा १७।२९ विपत्ति आ जाने पर मन को स्थिर रखना चाहिए । २२. अणुचितिय वागरे जब बोलो । सोच-विचार कर बोलो। ११९/२५ पञ्चकल्याणक] [१५८

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