Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 159
________________ उसके बल पर वह एक साथ सौ रूप धारण करके सो घरो मे भोजन कर लेता है । वह स्थूल हिंसा, स्थूल असत्य और स्थूल अस्तेय का त्यागी एव विरागी पूर्ण ब्रह्मचारी है, वह श्रावक-धर्म का पूर्ण रूप से पालन करता है। वह मृत्यु के अनन्तर ब्रह्म देवलोक में जाएगा और फिर मनुष्य जन्म-धारण कर महाविदेह क्षेत्र में निर्वाण प्राप्त करेगा। काम्पिल्यार से प्रभु पुन. विदेह की ओर लौट पडे और उन्होने इस वर्ष का वर्षावास वैशाली में किया। तीर्थङ्कर जीवन : बत्तीसवां चातुर्मास वैशाली के वर्षावास की पूर्णता पर भगवान महावीर काशी कौशल आदि प्रान्तो मे विचरण करते हए ग्रीष्म काल मे वाणिज्य ग्राम के द्वती पलास चैत्य नामक उद्यान मे ठहरे। यहा उनके पास भगवान पार्श्वनाथ का अनुयायी एक गागेय नामक साधु आया और उसने भगवान् से अनेक प्रश्न किए। उसका एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह था कि-"आप जो कुछ कहते हैं उसे आत्म-प्रत्यक्ष करके कहते है-या किसी अनुमान ग्रादि प्रमाण से, अथवा किसी शास्त्र के आधार पर कहते है ? महावीर का उत्तर था-'गागेय | मेरे प्रत्येक वक्तव्य का आधार मेरा 'आत्म-प्रत्यक्ष ज्ञान' है, क्योकि केवलज्ञान के द्वारा सब कुछ आत्म-प्रत्यक्ष किया जा सकता है।" गागेय अपने प्रत्येक प्रश्न का यथार्थ एव बुद्धि-सगत उत्तर पाकर प्रभु का शिप्य बनकर अपना साधना-पथ प्रशस्त करने लगा। भगवान ने इस वर्ष का चातुर्मास वैशाली मे जाकर व्यतीत किया। तीर्थडर जीवन. : तेंतीसवां चातुर्मास वैशाली के चातुर्मास की पूर्णता पर भगवान शीतकाल मे मगध की भूमि पर ही- विचरण करते रहे और वे पुन राजगृह के 'गुणशील चंत्य' नामक उद्यान मे पधारे । राजगृह मे उस समय विभिन्न धर्मावलम्बी आचार्य एव उनके अनुयायी थे । इन्द्रभूति, गौतम अन्य धर्मों की जो मान्यता सुनते वे उसके विषय मे भगवान् से पूछकर वास्तविकता को प्राप्त कर लेते थे। एक जीवनोपयोगी प्रश्न इस प्रकार थापञ्च-कल्याणका [ १३१

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203