Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 178
________________ का कल्याण हुआ है, उनका अपना तो परमकल्याण हुआ ही है। जो लोग अज्ञानान्धकार मे, भ्रम मे या मिथ्यात्व की दलदल मे फसे हुए थे, उन्हें भगवान महावीर की निर्वाणसाधना और निर्वाणप्राप्ति से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रेरणा मिली। किसी भी हीन से हीन दशा मे पडा हुमा आत्मा भी खासतौर से मानव. विना किमी देव या अन्य शक्ति का सहारा लिये, आत्म-पुरुषार्थ से निर्वाण तक पहुच सकता है, इस बात को भगवान महावीर के जीवन से जान कर अनेक आत्मानो ने कल्याण का मार्ग प्राप्त किया, निर्वाण-पथ पर चलने के लिये उद्यत हुए । इसी बात को आम जनता मे उजागर करने और सर्वसाधारण के लिये निर्वाण-कल्याण का मार्ग सुलभ करने के लिये तथा पुण्यलाभ की दृष्टि से देवों और मानवो ने मिल कर निर्वाण-कल्याणक उत्सव मनाया । महावीर-निर्वाण की स्मृति में दीपावलोपर्व का प्रारम्भ ___ भगवान महावीर की निर्वाण-रात्रि को सारी पृथ्वी दिव्य प्रकाश मे आलोकित हो उठी थी, किन्तु उनके पार्थिव शरीर का दिव्यसस्कार करने के बाद वहा उपस्थित सभी राजानो ने विचार किया कि हमारे बीच मे से ज्ञान का (भाव) महाप्रकाश उठ गया है, सदा के लिये हम से विदा ले कर वह भावोद्योत चला गया है,' समस्त ससार अन्धकाराच्छन्न हो गया है। इसीलिये देवो ने द्रव्योद्योत किया है। अत अब हमे भी उनकी स्मृति मे निर्वाण के प्रतीक के रूप मे द्रव्योद्योत (बाह्य प्रकाश) करना चाहिए। इसके लिये हम सकल्प करते हैं कि प्रतिवर्ष हम इस दिन दीप जला कर द्रव्य-प्रकाश किया करेगे । तब से प्रतिवर्ष इस दिन दीप जला कर प्रकाश करने से दीपावलीपर्व प्रारम्भ हा।' जैन-इतिहास मे दीपावली पर्व के श्रीगणेश का यह ज्वलन्त १ गते से भावुज्जोए दव्वुज्जोय करिस्सामो'-कल्पसूत्र सू० १२७ २ ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रवृद्धया, सुरासुरैर्दीपितया प्रदीप्तया । तदा स्म पावानगरी समन्तत , प्रदीपिताकाशतला प्रकाशते ।। ततस्तु लोक: प्रतिवर्पमादरात् प्रसिद्धदीपालिकयाऽन्न भारते। समुद्यत. पूजयितु जिनेश्वर, जिनेन्द्रनिर्वाणविभूतिभक्तिभाक् ।। -हरिवंश पुराण, [निर्वाण-कल्याणक १४८

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