Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 179
________________ प्रमाण है । सचमुच उस समय आम जनता की यह पुकार थी कि हमारे बीच मे से ससार की एक दिव्य विभूति उठ गई है। किसी ने यह भी कहा-अब हम जैसे मानसिक दृष्टि से दुर्वल व्यक्तियों का कोई सहारा नही रहा। कई लोगो की अन्तर्ध्वनि थी-आज ससार महावीर के चले जाने मे शोभाविहीन हो गया है। किसी ने कहा-मसार आज ज्ञान-दिवाकर के अस्त हो जाने मे अन्धकारमय हो गया है। इन सब कारणो को ले कर इसी दिन दीपपर्व प्रारम्भ करने के पुष्ट प्रमाण मिलते हैं। शक द्वारा की गई स्तुति मे भी भगवान् को 'लोगप्पइवाण'--कह कर 'लोकप्रकाशक प्रदीप' बताया गया है। मानतु गाचार्यकृत स्तोत्र मे भी तीर्थङ्कर भगवान् के लिये कहा गया है-दीपोऽपरस्त्वमसि नाथ जगत्प्रकाश' अर्थात्-'हे नाथ | आप जगत् को प्रकाशित करनेवाले दूसरे दीपक हैं। ____ यहा का होती है कि भगवान् महावीर से पहले भी २३ तीर्थड्वर हो चुके हैं और उनका निर्वाण भी रात्रि में ही हुआ था, फिर क्या कारण है कि भगवान महावीर के निर्वाण-दिवस को ही दीपावली के रूप मे मनाया गया, अन्य तीर्थङ्करों का निर्वाण दिवस भी दीपावली के रूप मे मनाया जाना चाहिये था ? इसके समाधान के रूप मे यह कहना है कि श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण बसती (नगरी) में हुआ था, वह भी धर्मदेशना देते हुए । जबकि शेष २३ तीर्थङ्करो का निर्वाण वनो या पर्वतो मे हुआ था, नगर या वसती मे नही और न ही धर्मोपदेश देते हए हुआ । सभव है उनके निर्वाण के समय कोई राजा या, विशिष्ट भक्त आदि के उपस्थित न रहने से ऐसा न हुआ हो । मान लो कि राजा ग्रादि की उपस्थिति २३ तीर्थङ्करो मे से किसी के निर्वाण के समय रही भी हो तो भी किसी को यह विचार न सूझा हो कि हम इन तीर्थडरो की निर्वाण-तिथि को दीपावली के रूप मे मनाए। ऐसी स्थिति मे अन्य तीर्थङ्करो के निर्वाण को दीपावली के रूप में मनाने का प्रश्न ही नही उठता। महावीर-निर्वाण के साथ 'भैयादूज' का सम्बन्ध । भगवान् महावीर के निर्वाण के समाचार विद्युद्वेग की तरह पञ्च-कल्याणक] [१४९

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