Book Title: Bhagavana Mahavira ke Panch Kalyanaka
Author(s): Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 168
________________ साथ इनके अमात्य एव भृत्यगण भी होंगे। इस प्रकार विशाल जनसमूह देखकर भगवान महावीर ने अपनी सुधामयी वाणी से उन राजाओ मन्त्रियो एव धनाढ्य व्यक्तियो का जीवन-परिचय दिया जिन्होंने जीवन भर अन्याय एव अनीति का प्रयोग किया, अधर्म से अपनी आजीविका की, दुर्व्यमनों में अपना अमुल्य समय व्यतीत किया, हिमा और दुराचार मे प्रवृत्ति की, ऐमे पत्रपन इतिहास सुनाए जिनका अन्तिम परिणाम अनन्न दु खपरम्परा है, क्योकि पापकर्म ही दु.खो की परम्परा वढाते हैं, वे आगे के लिये कैसे दुर्लभ बोधि बने? इस सम्बन्ध में विश्लेपण भी किया है। उसके बाद भगवान ने उन पचपन मानवो का परिचय दिया है जिन्होने अपना जीवन अहिंसा और सत्य-निष्ठ होकर व्यतीत किया, न्याय-नीति का अवलम्बन लिया, उच्चभावो से द्रव्य-दान दिया, गुरुवरो की उपासनाए की, जिनसे वे भविष्यत् काल मे सुख के पात्र बने और सुलभवोधि भी। इतना ही नही भगवान ने अपने मुखारविन्द से विनय आदि छत्तीस विपयो पर स्वतन्त्र देशनाए भी दी।' निर्वाण के पूर्व भगवान को मनोभूमिका भगवान महावीर का मानम पीयूपवर्षी उपदेशधारा बहाते समय अत्यन्त प्रसन्न था, गत्सल्य-रस प्राप्लावित था। जगत के जीवो के प्रति उनकी अपार करुणा वारधारा के रूप मे प्रवाहित हो रही थी। जमे मेघ गर्मी ने सतप्त पृथ्वी को अपनी जलधारा से सीच कर प्रचुर घान्य-सम्पत्ति से युक्त कर देता है, वैसे ही भगवान धर्मोपदेश रूपी जल का वर्षण करके भव्य जीवो की हृदयभूमि को ज्ञान, दर्शन एवं चारित्ररूपी धान्य-सम्पत्ति से युक्त कर देना चाहते थे। जगतगुरु भगवान महावीर के प्रति इन्द्रभूति गौतम का अत्यधिक अनुराग था। एक बार वह अपने से लघु श्रमणो को केवलज्ञान की उपलब्धि होते देग्व कर चिन्तित हो उठे थे कि मुझे अभी तक केवल ज्ञान १ इन महत्त्वपूर्ण एव जनोपयोगी देशना को गणधर मुधर्मा स्वामी ने क्रमश: द खविपाक और सुख-विपाक नामक सूत्रों के रूप मे और उत्तराध्ययन मूत्र के रूप मे गूथा । वे मून आज भी भव्य प्राणियों को ज्ञान का प्रकाश दे रहे है। १३८ [ निर्वाण-कल्याणक

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