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फै कादीतो प्रिय ना कह उठी-मेग पर जम गया, मेरा या जल गया। तभी ढक ने कहा-'यार्या जी, बल्ल जन रहा है यार में "जल गया" क्यो कह रही हो। प्रियदमंना प्रतिबुद्ध हुई और बहनः भगवान् महावीर के श्रमणी सघ में लोट पाई।
भगवान महावीर वर्षावास लिये मिथिला पहुंच गए। तीर्थर जीवन अट्ठाईसवां चातुर्मास :
वर्षावास की पूर्णता पर भगवान् ने कोगल देव जी और बिहार कर दिया। इन्द्रभूति गौतम बुद्ध भागे निकल गए और वे पहले ही श्रावस्ती के कोष्टक उद्यान मे ठहर गए।
उन दिनो भगवान् पाव नाय को परम्परा के महाश्रमण केसीकुमार भी श्रावस्ती के तिन्दुकोद्यान में ठहरे हा थे। दोनो मुनीश्वरों के शिष्य आचार-विचार की भिन्नता देवकर गोचने लगे यह विभिन्नता क्यो है ? गौतम स्वामी निरभिमानी एवं मरन प्रकृति के मुनिवर थे, अत: वे गिप्यो की जिज्ञासाम्रो की शका-निनि के लिये अपने शिष्य समुदाय के साथ स्वय ही तिन्दुकोद्यान में चले गए। मुनिराज केगिकुमार जी ने उनका यथोचित सत्कार किया। दोनो स्थविरो में ज्ञान-चर्चा प्रारम्भ हुई। मुख्य प्रश्न था---चार महायतो का और पाच महाव्रतो का। भगवान् पार्श्वनाथ ने चातुर्याम धर्म मे हिमा, सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह को ही स्थान दिया था। भगवान् महावीर ने उसमे ब्रह्मचर्य को और जोड कर पाच-महाव्रतों के पालन का विधान किया है। केशीकुमार के पूछने पर गौतम स्वामी ने बताया कि 'अब लोग प्राय: जड वक्र है, अत: धामिक आचरण मे स्पष्टता की आवश्यकता हुआ करती है। चातुर्याम धर्म के अनुसार निर्ग्रन्थ के लिये स्त्री भी एक परिग्रह ही है, किन्तु भगवान् महावीर स्त्री को पुरुष के समान अधिकार देते हैं,अत उसे परिग्रह की सज्ञा नही देते और स्त्री एवं पुरुष दोनो के लिये ब्रह्मचर्य की साधना आवश्यक मानते है। गौतम के इस समाधान से केशिकुमार को हार्दिक परितोष हुआ।
केशीकुमार के प्रश्नो मे एक अन्य महत्त्व पूर्ण प्रश्न था कि "गौतम आप अनेक शत्रुनो से घिरे हुए हैं, आप ने उन शत्रुनो पर कैसे विजय प्राप्त करली?
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[ केवल-ज्ञान-कल्याणक