Book Title: Barah Bhavana Ek Anushilan Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 6
________________ अपने आप में अद्वितीय हैं। अधिक क्या लिखें, उनका सम्पूर्ण साहित्य ही आत्महितकारी होने से बार-बार पढ़ने योग्य है। आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी समारोह के अवसर पर प्रकाशित आपकी कृति 'आचार्य कुन्दकुन्द और उनके पंचपरमागम', 'शुद्धात्म शतक' तथा 'कुन्दकुन्द शतक' ने भी अपार ख्याति अर्जित की है। इसीप्रकार शाकाहार वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित 'शाकाहार : जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में' पुस्तिका ने प्रकाशन के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं तथा हिन्दी, गुजराती, मराठी व अंग्रेजी में अब तक 3 लाख 5 हजार 200 प्रतियाँ प्रकाशित की जा चुकी हैं, जो एक रिकार्ड है। समयसार अनुशीलन के अबतक पाँच भाग तो प्रकाशित हो ही चुके हैं। वर्तमान में आप 'प्रवचनसार : एक अनुशीलन' के लेखन में व्यस्त हैं जिसका प्रथम भाग तो प्रकाशित हो ही चुका है। उक्त ग्रन्थ के सम्पूर्ण भाग प्रकाशित होने पर निश्चित ही प्रकाशन के क्षेत्र में नए मानदण्ड स्थापित होंगे, ऐसा पूर्ण विश्वास है। आपके द्वारा लिखित व सम्पादित लोकप्रिय महत्वपूर्ण प्रकाशनों की सूची पृथक् से अन्यत्र प्रकाशित की गई है। इस कृति को अल्पमूल्य में जन-जन तक पहुँचाने हेतु जिन महानुभावों ने अपना आर्थिक सहयोग प्रदान किया है, उनका भी हम हृदय से आभार मानते हैं। असली आभार और अभिनन्दन के पात्र तो पूज्य श्री कानजी स्वामी ही है, जिन्होंने डॉ. भारिल्ल सहित हम सबका जीवन घड़ा है। यदि उनका सत्समागम न मिलता तो हम सभी की न मालूम क्या स्थिति होती ? अतः उनका जितना भी उपकार माना जाए, कम है। अन्त में इस भावना के साथ विराम लेता हूँ कि सभी आत्मार्थी जन इन भावनाओं से, भावनाओं के इस अनुशीलन से अपनी भावना निर्मल करें। - ब्र. यशपाल जैन, एम. ए. प्रकाशन मंत्री : पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्टPage Navigation
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