Book Title: Atma Tattva Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अब पाठकगणो ? विचारोके कि यह श्रुतियां परमेश्वरने रची हे ? क्या वसिष्ठके शाप देनेवास्ते परमेश्वरने येह श्रुतियां विश्वामित्रको दीनीथी? क्यों कि, इस सूक्तका ऋषि विश्वामित्र ही है। विश्वामित्रने तप करके ईश्वरक अनुग्रहसे यह ऋचायों संपादन करी है ? ? क्या कहना है दयालु परमेश्वरका ? ? ? जिसने विश्वामित्रके तपसे संतुष्टमान होके, अपूर्वज्ञान रससे भरी हुई ऐसी २ ऋचायों प्रदान करी. लज्जाभि कहनेवालेको नही आति कि, वेद परमेश्वरके हुए हैं ? इस वास्ते किसी प्रमाणसें भी वेद ईश्वरका रचा सिद्ध नही होता है। ___तथा ऋ. सं. अष्टक ४ अध्याय ४ वर्ग २० में लिखा है कि, सप्त वविनामा ऋषि था, तिसके भतीजे तिसको पेटीमें घालके मुद्रा करके बडे यत्नसें अपने घरमें स्थापन करते हुए जैसे रात्रिमें अपनी स्त्रीसें विषयसेवन न करे, तैसें करते हुए, सवेरे २ तिस पेटीको उघाडके तिसको मारपीटके फिर पेटीमें घालके रखते भए, एसें चिरकालतकसो कृश और दुःखी तिस पेटीमें रहा, चिरकालतक मुनिने तिस पेटीसें निकलनेका उपाय चितवन करा, तब हृदयमें निश्चय करके अश्विनौ देवतायोंकी स्तुति करता भया; तब अश्विनौ आए, पेटी उघाडके तिसको निकालके शीघ्र अदृष्ट हो गए, सो ऋषि भार्यासें विषय सेवन करके तिनके भयसें सवेरे पेटीमें प्रवेश करके पूर्व की तरे स्थित रहा; तिस ऋषिने पेटीके निवास समयमें येह दो ऋचायों देखी, जो आगे कहेगे ॥ इति भाष्यकारः ।। अब श्रुतियां लिखते हैं । |प्रथमा । विजिहीष्व वनस्पते योनिः सूय॑न्त्या इव । श्रुतमै अश्विना हवं सप्तर्वप्रिंच मुश्चतम् ॥ १ ॥ ५ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113