Book Title: Atma Tattva Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 43
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (30) ॥ अद्वितीया ॥ असौयएषि वीरको गृहं गृहं विचाशत् । इमंजम्भसुतं पिवधानावन्तं करम्भिर्णमपूयन्त मुक्थिनम्।। ॥ अथ तृतीया ॥ आचनत्वां चिकित्सा मोधि चनत्वा नेमसि । शनैरिव शनकैरि वेन्द्रायेन्दो परिस्रव ॥ ३ ॥ ॥ अथ चतुर्थी । कुविच्छक कुविकर त्कुविनोवस्य॑ सस्करत् । कुवित्पति द्विषो यती रिन्द्रेण संगमा महै ॥ ४ ॥ ॥ अथ पंचमी ॥ इमानि त्रीणिविष्टया तानीन्द्र विरोहय । शिरस्त तस्योरामादिं म उपोदरै ॥ ५ ॥ ॥ अथ षष्ठी॥ असौ च यान उर्वरादिमां तन्वं मम । अयो त तस्य यच्छिरः सर्वा तारोमशा कृधि ॥६॥ ॥ अथ सप्तमी ।। खे रथस्य खे नसः खे युगस्य शतक्रतो । अपालामिन्द्र त्रिव्यूत्व्य कुणोः सूर्यत्वचम् ॥७॥ *.स. A है । स. ६ ॥ अब वाचक वर्गो ! विचार करो कि, यह कथन परमेश्वर सर्वज्ञका सिद्ध हो सकता है ? प्रथम तो इस सूक्तका अपाला स्त्री ही ऋषि है और परमेश्वरने तिसके तपसें तुष्टमान होके For Private And Personal Use Only

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