Book Title: Atma Tattva Darshan
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 33 ) उत्तर- जबतक ब्रह्मज्ञानी जगत् व्यवहार मानेंगे, और माता, बहिन, बेटीको अगम्य जानेंगे, तबताइ तिनकी माया (भ्रांति ) दूर नहीं होनेसे तिनको ब्रह्मज्ञान नहि होवेगा, असल ब्रह्मज्ञानी तो ब्रह्माजी थे, जिनोंने सर्व जगत्को ब्रह्मरूप जानकर अपनी पुत्रीसेही संभोग करा; यही प्रायः सर्व वेदान्तीयोंका तात्पर्य (सिद्धांत) और अपालाके शिरमें टट्टरी होनेसे अपाला के बापको क्या दुःख था ? क्या उसको जान चडना था ? और अपाला के गुह्य स्थानमें रोम नही थे तो तिसको क्या दुःख था ? हां, जेकर इंद्रसें यह मांगती कि, मेरे शरीरका रोग तूं दूर कर, सो तो वर मांगा नहीं. वोतो इंद्रने आपही मुखकी चगल सोगरस पीके संतुष्ट होके तिसको यंत्रमेसें खेंचके छीलछाल के अच्छी ( चंगी) करदीनी, इस पूर्वोक्त श्रुतियोंके कथनमें सत्य कितना है, और झूठ कितना है, सो वाचक वर्ग आपही विचार लेवेंगे. क्यों कि, मनुष्यकी चमडीसें भी क्या मयनी ( शल्यक), गोह, और किरले, उत्पन्न हो सकते हैं ? कदापि नहि हो सकते हैं इस वास्ते वेद इश्वरके कथन करे नही सिद्ध होते हैं, किन्तु ब्राह्मणोकी स्वकपोल कल्पना सिद्ध होती है. इति ॥ ઉપર પ્રમાણે વેદોની સમાલોચનાના બે લેખો વાચકોએ વાંચ્યા હવે તે બે લેખનો સાર વાચીને તેઓને જેમ સુજે તેમ હતું. તેને ઓને યોગ્ય લાગે તે સત્ય ગ્રહણ કરે તેમાં અમને કંઈ આગ્રહ નથી. ચાર વેદ, ઉપનિષદો પર અમને અરૂચિ નથી. તેમે જૈનશા પર અમને એકાંત રાગ નથી. રાગ દ્વેષ વિના મધ્યસ્થ ભાવથી જે કઈ અમને સત્ય લાગે છે તે અમો ગ્રહીએ છીએ. અમોએ ઇશ્વરકૃત જગત છે કે નહીં તેની શોધ માટે વેદોની સમાલે ચનાઓને રજુ કરી છે. વેદ સંબંધી આવી અનેક For Private And Personal Use Only

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