Book Title: Ashtsahastri Part 1 Author(s): Vidyanandacharya, Gyanmati Mataji Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh SansthanPage 12
________________ ( ११ ) इन्द्रिय और अनिन्द्रिय की अपेक्षा से रहित सामान्य प्रत्यक्ष के द्वारा ही " दोष आवरण के अभावपूर्वक सर्वज्ञ सिद्धि सूक्ष्मादि पदार्थों को प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा जानने वाले कौन हैं ? अर्हत बुद्ध आदि या इससे भिन्न अन्य कोई जन ? मीमांसक जिन प्रश्नोत्तरों के द्वारा सर्वज्ञ का अभाव सिद्ध करना चाहते हैं जैनाचार्य " सर्वज्ञसिद्धि का सारांश चार्वाक मत खण्डन चार्वाक के द्वारा मोक्ष एवं उसके कारण का खंडन एवं जैन के द्वारा समाधान चार्वाक मत निरास संसार तत्व पर विचार चार्वाक के द्वारा संसार तत्त्व का खंडन एवं जैनाचार्य द्वारा उसका समाधान वन में अग्नि स्वयमेव उत्पन्न होती है पश्चात् अग्निपूर्वक ही अग्नि उत्पन्न होती है इस मान्यता पर विचार शब्द और बिजली आदि उपादान के बिना ही उत्पन्न होते हैं चार्वाक की इस मान्यता पर प्रत्युत्तर भूत चतुष्टय एवं चेतन का लक्षण भिन्न-भिन्न होने से ये भिन्न तत्त्व हैं इस पर विचार चार्वाक मत के खण्डन का सारांश ज्ञान अस्वसंविदित नहीं है ज्ञान अस्वसंविदित है इस मान्यता पर जैनाचार्य समाधान करते हैं सुख और सुख का ज्ञान भी कथंचित् पृथक्-पृथक् ही है इस पर विचार स्वात्मा में क्रिया का विरोध होने से ज्ञान स्वयं को नहीं जानता है इस पर विचार भूत और चैतन्य का लक्षण पृथक्-पृथक् ही है उपादान का लक्षण भिन्न लक्षणत्व हेतु भिन्न-भिन्न तत्त्व से व्याप्त है यह बात कैसे बनेगी ? इसका समाधान चार्वाक, मीमांसक और नैयायिक ज्ञान स्वसंविदित नहीं मानते हैं उनके खंडन का सारांश संसार के कारण भूत तत्त्वों का विचार दूरवर्ती पदार्थ जिसके प्रत्यक्ष हैं वे अर्हत आप ही हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only पृष्ठ नं० ३४३ ३४६ ३४७ ३५४ ३५५ ३५७ ३५७ ३६० ३६२ ३६१ ३६५ ३६७ ३६८ ३७० ३७२ ३७३ ३७४ ३७७ ३७८ ३८० www.jainelibrary.orgPage Navigation
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