Book Title: Ashtmangal Aishwarya Author(s): Jaysundarsuri, Saumyaratnavijay Publisher: Jinshasan Aradhana Trust View full book textPage 8
________________ उत्पत्स्यते च मम CG कोऽपि समानधर्मा * अष्टमंगल की पी.एच.डी. तुल्य थीसिस तैयार करने में जैसे जैसे गहराई में जातें गयें, तभी अष्टमंगल की मूलभूत जैन परंपरा, अष्टमंगल की शाश्वतता, उसका शाश्वतसिद्ध क्रम, उसकी ८ या ६४ की संख्या, उसका पूजन नहीं लेकिन आलेखन, उसके विसर्जन में दोषाभाव इत्यादि अनेक नवीन पदार्थों के बारे में जानकारी मिलती गई। वो सभी स्व पर धर्मशास्त्रों की प्ररूपणाएँ तथा शिल्पकला के प्राचीन द्रष्टांतों का अष्टमंगल माहात्म्य (सर्वसंग्रह) नाम के ग्रंथ में विस्तार से निरुपण किया गया है। जिज्ञासु एक बार उसका अवगाहन जरुर करें। * यंत्रविज्ञान के अनुसार, प्रत्येक आकार एक यंत्र है, और उसकी खुदकी एक पोजिटीव या नेगेटीव ऊर्जा होती है, वायब्रेशन होते है। अष्टमंगल के शुभ मांगलिक आकार पोज़िटीव ऊर्जा से भरपूर है। स्वस्तिक के बारे में तो इस संदर्भ में बहुत कुछ संशोधन किया गया है, ग्रंथो का भी लेखन किया गया है, तथा कई के अनुभव भी है। अन्य सातों मांगलिक आकारों के बारे में भी ऐसा संशोधन होना जरूरी है। * आज, बहुत सारे जैन, जमीन चेकींग जैसे ऊर्जा-ओरा रेकीवायब्रेशन की फ्रिक्वन्सी नापना इत्यादि फिल्ड में कार्यरत हैं। वें भी इस बारे में प्रयत्न कर सकते है। इसके द्वारा अष्टमंगल का शाश्वत क्रम इस तरह ही क्यों- उसका भी रहस्य बाहर आ सकता है। अष्टमंगल की सृष्टि के पाँच तत्व या नौ ग्रह के साथ के अनुसंधान की दिशा में भी विचारणा हो सकती है। जैसे की, जलपूर्ण कलश, पृथ्वी तत्व और जल तत्व का प्रतिनिधित्व करें, १२वीं मीन राशि गुरु ग्रह की होने से मीनमंगल और गुरुग्रह के पारस्परिक संबंध की विचारणा, इत्यादि... * प्रबुद्ध चिंतक अष्टमंगल की, ८ कर्म-८ योग के अंग, ८ योगद्रष्टि इत्यादि अष्ट संख्यात्मक पदार्थों के साथ के तुलनात्मक, अनुसंधानात्मक चिंतन कर के नूतन उत्प्रेक्षाएं श्रीसंघ में प्रस्तुत कर सकते हैं। * कवित्व शक्ति संपन्न पुण्यात्माओं अष्टमंगल विषयक स्तुति __ इत्यादि नूतन रचनाएँ कर सकते हैं। * जैसे जैसे समय बीतता जायेगा, कुदरत के क्रम में ऐसा कार्यPage Navigation
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