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2. श्रीवत्स
प्रभु! आपके ह्रदय में रहते परम (केवल) ज्ञान ही मानो श्रीवत्स के बहाने बाहर प्रकट हुआ है... उसको मेरा लाख लाख वंदन !!!
2. 1 अष्टमंगल का दूसरा मंगल है श्रीवत्स :
10वें शीतलनाथ भगवान का लांछन भी श्रीवत्स ही है। जिनप्रतिमा की छाती में बीच में जो उभार का भाग दिखता है वह है श्रीवत्स । शाश्वत जिनप्रतिमाओं के आगमिक वर्णन में भी छाती
श्रीवत्सना कहा गया है। तीर्थंकरों की छाती के मध्य भाग में बाल का गुच्छा एक विशिष्ट आकार धारण करता है, उसे श्रीवत्स कहते है। तदुपरांत, चक्रवर्तीओं एवं वासुदेवों को भी छाती के मध्य भाग में श्रीवत्स होता है ।
श्रिया युक्तो वत्सो वक्षोऽनेन श्रीवत्सः - रोमावर्तविशेषः । (अभिधानचिंतामणि - 2 / 136 )
जैन परंपरामें श्रीवत्स के दो स्वरुप प्रचलित है। पहला स्वरुप विक्रम की पांचवीं या नवीं सदी तक प्रचलित रहा, जिसे हम प्राचीन श्रीवत्स कहेंगे। उसके बाद प्रचलित हुए श्रीवत्स को हम अर्वाचीन / आधुनिक श्रीवत्स कहेंगे।
2. 2 प्राचीन श्रीवत्स :
अर्थ और आकार :
श्री अर्थात् लक्ष्मी। श्रीवत्स अर्थात् लक्ष्मी देवी का कृपापात्र पुत्र । यह श्रीवत्स ऐश्वर्य, विभूति, शोभा, संपन्नता, संपत्ति, समृद्धि, सुख, सर्जन आदि का प्रतीक है। प्राचीन श्रीवत्स की आकृति, पुरुष की आकृति से मिलतीजुलती है। पालथी लगा कर बैठा हुआ कोई पुरुष, अपने दोनों हाथों से गला या कंधे को स्पर्श करता हो, ऐसे स्वरूप का श्रीवत्स प्राचीन में दिखाई देता है। जो कि, वो आकृति में भी कालक्रम अनुसार सामान्य सामान्य परिवर्तन हुआ है। कालान्तर में वह आमने सामने फन उठाये हुए