Book Title: Ashtmangal Aishwarya
Author(s): Jaysundarsuri, Saumyaratnavijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ लखनउ संग्रहालय की 2000 वर्ष प्राचीन श्री वत्सयुक्त मथुरा प्राप्त जिनप्रतिमा प्राचीन श्रीवत्सयुक्त अनेक जिनप्रतिमाएँ मथुरा से प्राप्त हुई है। नागमिथुन स्वरुप भी हुआ। मथुरा श्रीवत्स और भी विशेषरुप में देखा जाता है। 2.3 प्राचीन जिनप्रतिमा तथा शिल्पकला में श्रीवत्स : प्राचीनकाल से जिनमूर्तिविधान में छाती में श्रीवत्स करने के शास्त्रपाठ मिलते है। मथुरा के खुदाई काम में सैंकडों जैन प्राचीन अवशेष मिलें हैं, जिन में 31 जितनी जिनप्रतिमाएं तथा आयागपट्ट प्राप्त हुए है। यहां की बहुत सारी जिनप्रतिमाओं के वक्षस्थल पर प्राचीन श्रीवत्स दिखाई पड़ता है। श्रीवत्स का सब से प्राचीन स्वरुप मथुरा की जिनप्रतिमाएं तथा आयागपट्ट में ही देखने को मिलता है। आयागपट्ट में जहां अष्टमंगल का आलेखन है वहां श्रीवत्स का स्पष्ट सुंदर स्वरूप दिखाई पडता है। वसंतगढ़ शैली की 8 से 10वीं सदी की कुछ जिन प्रतिमाओं में भी प्राचीन स्वरुप के श्रीवत्स होते थे। ऐसी प्रतिमा राजस्थान के पींडवाडा गांव में देखने को मिलती है। (13)

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40