Book Title: Ashtmangal Aishwarya
Author(s): Jaysundarsuri, Saumyaratnavijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ जैन परंपरा में स्वस्तिक की चार पँखड़ी, चार गति को सूचित करती है। इन चार गति के चक्कर में से मुक्त हो कर तीन रत्न(सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र)की आराधना करके सिद्धशिला में हमें स्थिर होना है, ऐसी भावना के साथ पूजा में अक्षत के द्वारा प्रभु समक्ष स्वस्तिक,3 ढेरी और सिद्धशिला का आलेखन किया जाता है। उपरांत, स्वस्तिक की चार पाँख; दान, शील, तप और भाव, ये चार प्रकार के धर्म को भी सूचित करती है। वैदिक परंपरा में स्वस्तिक; चार पुरुषार्थ, चार वेद, चार युग तथा चार आश्रम का प्रतीक भी माना गया है। वास्तुशास्त्र अनुसार स्वस्तिक की चार मुख्य रेखा, चार दिशा और उसकी चार पाँख चार विदिशा को सूचित करती है। 1.4 अत्यंत ऊर्जासभर स्वस्तिक : प्रत्येक व्यक्ति या पदार्थ की तरह प्रत्येक आकार की भी अपनी ऊर्जा होती है। पूर्ण आकार-प्रमाण सहित के स्वस्तिक में लगभग 1 लाख बाईस जितनी शुभ पोजिटीव ऊर्जा होती है। वास्तुशास्त्रीओ स्वस्तिक के प्रयोग द्वारा अनेक सकारात्मक आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त करते है। 1.5 अक्षत दारा स्वस्तिक(तथा अन्य) मंगल आलेखन: अक्षत(चावल)द्धारा आलेखन करने के 3 कारण (बजह) : (1)अक्षत उज्ज्वल वर्ण का धान्य है, जिस के द्वारा आत्मा को अपनी कर्मरहित उज्ज्वल अवस्था का ख्याल रहे। (2)अक्षत (चावल), सर्वत्र देश-काल में सुलभ द्रव्य है। (3)अक्षत एक ऐसा धान्य है जो बोने से भी फिर से उगता नहीं। प्रभु समक्ष स्वस्तिक(और अन्य)आलेखन करने से फिर से संसार में जन्म-मरण नहीं करना पड़े ऐसा भाव अक्षत के द्वारा व्यक्त होता है। 900 वर्ष प्राचीन कुंभारीया के जिनालय के भोंयतळिये में स्वस्तिक का अद्भुत शिल्प

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40