Book Title: Ashtmangal Aishwarya
Author(s): Jaysundarsuri, Saumyaratnavijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ S है। अष्टमंगल माहात्म्य (सर्वसंग्रह) ग्रंथ में इस संबंध में अनेक फोटोग्राफ सहित विस्तारपूर्वक विचारणा की गई है। जिसको जो स्वरुप में करना है, वो उस स्वरूप में कर सकते है। दीपावली में चोपडापूजन में 'स्वस्तिश्री' लिखने की परंपरा जो है, वह प्रथम दो मंगल स्वस्तिक और श्रीवत्स के सूचक है। स्वस्ति सर्वत्र मंगल का और श्री, सुख-समृद्धि का प्रतीक है। 20) 3. नंद्यावर्त (9 3.1 हे प्रभु ! आपकी भक्ति के प्रभाव से, भक्त के जीवन में सर्व प्रकार से सुख-समृद्धि के आवर्तों की रचना होती है, ऐसा सूचितार्थ नंद्यावर्त सब को सुखकारी हो। अष्टमंगल का तीसरा मंगल है नंद्यावर्त या नंदावर्त। नंदि+आवर्तनंद्यावर्त, नंद+आवर्त=नंदावर्त। नंदि अथवा नंद अर्थात् आनंद, सुख, प्रसन्नता। आवर्त अर्थात् घुमाव, भँवर, वर्तुल, फिर से आना-होना। नन्दिजनको आव” यंत्र-नंद्यावर्तः। जिसमें आनंद-कल्याण के आवर्त है वह नंद्यावर्त। जिसके द्वारा जीवन में दुःख के वर्तुल में से बाहर निकल कर सुख के आवर्तन की रचना होती है वह नंद्यावर्त। जिसके द्वारा सीमातीत आनंद की प्राप्ति हो वह नंद्यावर्त। 18वें अरनाथ भगवान का लांछन है नंद्यावर्त। अंजनशलाका-प्राणप्रतिष्ठाविधान का सब से प्राचीनप्रभावक-महत्त्व के पूजन का नाम है नंद्यावर्त। उँगली के पोर पर नंद्यावर्त आकार में जाप भी किए जाते है। हमारे यहां नंद्यावर्त के दो स्वरुप प्रचलित है। 11वीं सदी के बाद नंद्यावर्त का अर्वाचीन स्वरुप देखा जाता है। उसके पूर्व प्राचीन नंद्यावर्त प्रचलित था।

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40