Book Title: Ashtmangal Aishwarya
Author(s): Jaysundarsuri, Saumyaratnavijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 27
________________ 3. 4 नंद्यावर्त मान्यता : श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ में प्राचीन साहित्य के शास्त्रपाठ और शिल्पकला संदर्भ में प्राचीन- अर्वाचीन, दोनों प्रकार के नंद्यावर्त मान्य है। अष्टमंगल माहात्म्य (सर्वसंग्रह) ग्रंथ में इस संबंध में फोटोग्राफ्स सहित विस्तारपूर्वक विचारणा की गई है। जिसको जो स्वरूप करना हो वो वह कर सकता है। AMM 4. वर्धमानक प्रभु ! उर्ध्वाधः दोनो दिशामें उपर से नीचे आता और नीचे से बढ़ कर उपर तरफ जाता वर्धमानक सूचित करता है कि जीवों को जगत में आपकी कृपा से ही पुण्य, यश, अधिकार, सौभाग्य इत्यादि बढ़तें रहतें हैं। 2000 वर्ष प्राचीन नंद्यावर्त आयागपट्ट ANNNNNNN www MA 4. 1 अष्टमंगल का चौथा मंगल है वर्धमानक । वर्धते इति वर्धमानकः । जो दशो दिशामें वृद्धि प्राप्त करें वह वर्धमानक । जो वृद्धि करें, समृद्धि करें वह वर्धमानक । वर्धमानक अर्थात् 17

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