Book Title: Ashtmangal Aishwarya
Author(s): Jaysundarsuri, Saumyaratnavijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 14
________________ मंगल अनेक स्वरुप में और अनेक प्रकार में होता है फिर भी यहां हम अष्टमंगल के विषय में विचारणा करेंगे। अ-4 अष्टमंगल की मौलिक जैन परंपरा : मांगलिक प्रतीकों का उल्लेख प्रत्येक धर्म की परंपरा में तथा लौकिक ग्रंथों में भी है। लेकिन, अनेक मांगलिक प्रतीकों में से निश्चित आठ मंगलों की अष्टमंगल जैसी गिनती सब से पहले जैनागम ग्रंथो में ही है। बाद में, अन्य धर्मोने भी अपने तरीके से अपने आठ मंगल की जानकारी दी। ऐसे ही, शिल्पकला में भी सब से पहले अष्टमंगल का सामूहिक उत्कीर्णन दो हजार वर्ष पुराने मथुरा से प्राप्त जैन आयागपट्ट में ही देखने को मिलता है। जिसका चित्र प्रारंभमें दिया गया है। बालासा मथुराप्राप्त 2000 वर्ष प्राचीन अष्टमंगलयुक्त चोरस छत्र कुंभारीया के हजार वर्ष प्राचीन शांतिनाथ जिनालय की द्वारशाख पर सामूहिक अष्टमंगल का अंकन देखा जाता है। प्राचीन जैन हस्तप्रतों की बोर्डरो में भी सुशोभन के हेतु किया गया अष्टमंगल देखने को मिलता है। न

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