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इस मंगल का दर्शन बारबार करना अतियोग्य माना गया है, क्युंकी वो पूरे विश्व में विशिष्ट एवं असाधारणीय है। हर किसी को बारबार देखने को मन होवे ऐसे आकारमय है । नेगेटीवीटी के कारण अगर चित्त अप्रसन्न या डिप्रेशन में रहता हो वहां पर इन आकारों की पोझीटीवीटी मन को स्वस्थता प्रदान करती है । किसीभी कार्यसिद्धि हेतु ये आकार पोझीटीव उर्जा प्रदान करते है। जिन जिन स्थानों पर ईसका आलेखन, एनग्रेवींग, चिपकाना / लसना हुआ वहाँ पर अष्टमंगल समग्र वायुमंडल / वातावरण की नकारात्मक / ऋणात्मक उर्जा दूर करके शुभ उर्जा बढाता है।
अ- 8 अष्टमंगल कहां कहां कर सकतें हैं ?
जिनप्रतिमा की तरह गुरु समक्ष भी, गहुंली में अष्टमंगल आलेखन भी कर सकते है।
प्रतिष्ठा-प्रभुप्रवेश, उपधानमाल, चातुर्मास प्रवेश का सामैया इत्यादि अनेक अवसरों की रथयात्रा में अष्टमंगल रचना कर सकतें हैं।
उपाश्रय, घर इत्यादि स्थानों की द्वारशाखाओं पर अष्टमंगल कर सकतें हैं। जिनालयों की शिल्पकला में द्वारशाख, छत इत्यादि योग्य स्थान पर अष्टमंगल का उत्कीर्णन हो सकता है।
अ- 9 अष्टमंगल संदेश :
(1) स्वस्तिक : सांसारिक चार गति के सूचक स्वस्तिक की चार पंखुडियाँ, चार प्रकार के धर्म की आराधना द्वारा जीव को संसार सागर से तैरने का संदेश देती है।
(2) श्रीवत्स : तीर्थंकरोके हृदयस्थान में स्थित श्रीवत्स, उनके हृदय में बसे विश्व के समस्त जीवो प्रति निष्काम करुणाप्रेम को सूचित करता है। और अपने जीवनमें जीवो प्रति द्वेषभाव आदि दूर कर सर्व जीव प्रति मैत्रीभाव का उपदेश देता है। ( 3 ) नंद्यावर्त :
: मध्य की धरी द्वारा गोल गोल फिरने का भाव सूचित करता नंद्यावर्त, जीव को सतत आध्यात्मिक आत्मोन्नति के मार्ग पर हिंमत हारे बिना, धीरज खोए बिना प्रगतिशील अग्रेसर रहने का संदेश देता है।
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