Book Title: Ashtmangal Aishwarya
Author(s): Jaysundarsuri, Saumyaratnavijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 16
________________ अष्टमंगल का शाश्वत सिद्ध आगमिक क्रम इस प्रकार है: तंजहा-सोत्थिय-सिरिवच्छ-नंदियावत्तवद्धमाणग-भद्दासण-कलश-मच्छ-दप्पण। (1)स्वस्तिक, (2)श्रीवत्स, (3)नंद्यावर्त, (4)वर्धमानक, (5)भद्रासन, (6)कलश, (7)मीनयुगल, (8)दर्पण. अ-6 अष्टमंगल यात्रा: आलेखन से पाटला-पाटली तक जिनपूजा देवलोक की हो या मनुष्यलोक की, जिनपूजा में जिनप्रतिमा समक्ष अष्टमंगल के आलेखन की ही बात ग्रंथों में है तथा व्यवहार में भी प्रचलन में है। अष्टमंगल रजतपट्टिका अंजनशलाका जैसे विधानोमें 15वीं सदी तक शुद्ध गौबरयुक्त भूमि पर ही अष्टमंगल का आलेखन होता था । 16वीं सदी से पाटले पर आलेखन शुरु हुआ। 19वीं सदी से प्रायः करके सभी विधि-विधानो में अष्टमंगल पाटला आवश्यक तौर पे शुरु हुआ जिस के उपर अष्टमंगल आलेखन होता रहा।* अष्टमंगल आलेखन में देर होती है, सभी से होता भी नहीं, इसलिए अष्टमंगल के आकार में नक्काशी किए हुए तैयार पाटला विधिविधान में अमलीकरण में आये। नित्य दैनिक पूजा में जिनप्रतिमा समक्ष अक्षत से अष्टमंगल का आलेखन होता था। इन में सभी से होता भी नहीं और करने में देर भी होती है, इसलिए अष्टमंगल के आकार में नक्काशी किए हुए तैयार पाटला जिनपूजा की सामग्री स्वरुप में आएं। उनमें अक्षत भर दो फिर अष्टमंगल तैयार हो जाता है। जिनमंदिरो में अष्टमंगल नक्काशी किया हुआ पाटला तैयार रखा जाता था। आज भी कुछ पुराने मंदिरो के तहखाने में ऐसे संभाल कर रखे गये पाटले देखने को मिल सकते है। टीप्पणी : ये आलेखित अष्टमंगल का विसर्जन करने में जीवहिंसा आदि कोई दोष लगता नही। *

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