Book Title: Ashtmangal Aishwarya
Author(s): Jaysundarsuri, Saumyaratnavijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 15
________________ श्वेतांबर संप्रदाय में आज तक उसका चलन रहा है। श्वेतांबर साधु-साध्वीजी भगवंतो के ओघे में(रजोहरणमें) मंगल स्वरुप में अष्टमंगल आलेखन की परंपरा है। श्रावकों के घरों की द्वारशाख पर अष्टमंगल की पट्टीयां या स्टीकर लगाने का भी बहुत चलन है। प्रायः प्रत्येक जिनालयों में जिनपूजा के उपकरण स्वरूप अष्ट मंगल की पाटली जरुर देखने को मिलेगी। 24 तीर्थंकर भगवंतो के जो 24 लांछन कहे जाते है, इस में 4 लांछन ऐसे हैं जिसकी गिनती अष्टमंगल में भी है, जैसे कि, सातवें सुपार्श्वनाथ-स्वस्तिक लांछन, दशवें शीतलनाथश्रीवत्स लांछन, अठारवें अरनाथ-नंद्यावर्त लांछन, उन्नीसवें मल्लिनाथ-कुंभ लांछन। अ-5 आगमो में अष्टमंगल का शाश्वतसिद्ध क्रम : श्री रायपसेणीय सूत्र, श्री औपपातिक सूत्र, श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र, श्री जंबूद्धीपप्रज्ञप्ति, श्री ज्ञाताधर्मकथा, श्री भगवती सूत्र आदि आगमों में भिन्न-भिन्न संदर्भ में कई बार अष्टमंगल का उल्लेख हुआ है। श्री विजयदेव और श्री सूर्याभदेव, शाश्वत जिनप्रतिमा की पूजा अंतर्गत प्रभु समक्ष अष्टमंगल आलेखतें हैं। देवलोक के विमानों के तोरणों में, जहां परमात्मा की दाढाएं स्थित होती है, वो माणवक स्तंभ पर, सिद्धायतनों-शाश्वत जिनालयों की दारशाख पर अष्टमंगल होते हैं। चक्रवर्तीओं चक्ररत्न की पूजा करते वक्त चक्ररत्न समक्ष अष्टमंगल का आलेखन करते हैं। इन सभी उल्लेखों से सिद्ध होता है कि अष्टमंगल श्वेतांबर मान्य आगमों के आधार पर शाश्वत है। उपरांत, अन्य महत्त्व की बात यह है कि इस अष्टमंगल का क्रम भी शाश्वत है। आगमों में जहां भी अष्टमंगल का निरुपण है वहां एक समान क्रम का ही पाठ है। जमाली या मेघकुमार के तथा परमात्मा की दीक्षा के वरघोडे में भी शिबिका के आगे अष्टमंगल होते है। और वे भी अहाणुपुव्वीए' अर्थात् प्रत्येक मंगल आगे-पीछे या अव्यवस्थित नहीं लेकिन यथाक्रम से ही होते है।

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