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हररोज पाटला पर अष्टमंगल का आलेखन करने के बजाय पंचधातु की अष्टमंगल की पाटली बना कर प्रभु समक्ष रखें तो कैसा रहेगा? ऐसा विचार किसी के मन में आया होगा, और क्रमशः पाटला निकलता गया और पाटली का चलन आज सर्वव्यापी हो गया। इस पाटली पर केसर का अर्चन करना शुरु हुआ। इस तरह, पाटली प्रभु के आगे रख कर उसे केसर से अर्चन करने में आलेखन की भावना चढकर पूजन की भावना उपस्थित होती है। वास्तव में, अष्टमंगल का आलेखन ही होता है, पूजन नहीं, इसलिए कितनेक जिनालयो में भंडार पर जहां दर्पण, चामर, धूप-दीप रखें जाते हैं वहां पर ही अष्टमंगल की पाटली, जिनपूजा के उपकरण स्वरुप में ही रखी जाती है। इस पाटली को हाथ में धारण कर के प्रभु समक्ष खड़े रहकर से आलेखन की
भावना हृदय में उपस्थित होती है। अ-7 अष्टमंगल दर्शन-श्रीसंघ का मंगल :
अष्टमंगल, आठ शुभ मांगलिक आकार होते हैं। कोई भी कार्य के प्रारंभ में, प्रयाण समय पर, नूतन वर्ष के प्रारंभ में या शुभ पवित्र दिनों में उसका दर्शन विघ्ननाशक और कार्यसाधक माना जाता है। सकल श्री संघ के आनंद-मंगल, क्षेम-कुशल की भावना से योग्य समय पर सकल श्री संघ को उसका दर्शन कराना भी उचित ही होगा। आगमों में जहां अष्टमंगल का निरुपण किया गया है, वहां कहा गया है कि- इस मांगलिक आकारों के दर्शन से चित्त में संतोष की भावना उत्पन्न होती है। इन आकारों को कोई साधारण न समजे। वे उद्धेग दूर कर के मन को शांति और प्रसन्नता प्रदान
हस्तप्रतो में अष्टमंगल करतें हैं।
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