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|| ॐ ह्रीं श्री अहँ श्री जीराउला-शंखेश्वर पार्श्वनाथाय नमः ।। ।। श्री प्रेम-भुवनभानु-पद्म-जयघोष-हेमचंद्र-जयसुन्दर-कल्याणबोधिसूरिभ्यो नमः ।।
।। ॐ ह्रीं ऐं क्लीं श्री पद्मावतीदेव्यै नमः ।।
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'अष्टमंगल के दर्श से, श्रीसंघका उत्थान । विघ्न विलय सुख संपदा, मिले मुक्ति वरदान ।।
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EGEGEGEGEGENERAGEATECEDEOसतरलतलवार
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अ. अष्टमंगल अ-1 मंगलं...मंगलं...तथास्तु !
व्यक्ति की श्रद्धा जीवन के अनेक प्रसंग पर, अनेक स्वरूप में प्रकट होती है। जिनालय-उपाश्रय के खातमुहूर्त-शिलान्यास, जिनबिंब प्रतिष्ठा, प्रभुप्रवेश जैसे धार्मिक अवसर हो या तो पुत्र परीक्षा देने के लिए या परदेश अभ्यासार्थे जा रहा हो, कन्या ससुराल जा रही हो, बहु प्रसूति के लिए मायके जा रही हो, नये घर में कलश रखना हो, नया व्यवसाय या नयी दुकान की शुरुआत करनी हो अथवा शादी जैसे सांसारिक अवसर हो, कोई भी ऐसा कार्य निर्विघ्न और अच्छी तरह संपन्न हो, ऐसी सभी के मन की इच्छा-भावना होती है। इस के लिए शुभ मुहूर्त देखते है और मांगलिक उपचार भी किया जाता है। शुभ अवसर पर गुड़, धनिया या गुड़मिश्रित धनिया, दहीं, कंसार, लापसी, सुखडी, पेंड़ा इत्यादि खाने-खिलाने का रिवाज है। इन सभी खाद्य द्रव्यों को मंगल माना गया है। परीक्षा देने जाते वक्त सगुन के तौर पर, विघ्ननाश और कार्यसिद्धि की भावना से
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