Book Title: Ashtmangal Aishwarya
Author(s): Jaysundarsuri, Saumyaratnavijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 7
________________ मांगल्यम् । र सालों से जिज्ञासा रहती थी कि अष्टमंगल का जैन शासन में क्या महत्त्व होगा? जैन शासन में तो भावमंगल का ही महत्त्व होगा न ! भावमंगल तो पंच परमेष्ठि को किया गया नमस्कार है। वो तो सामान्यतः सभी जैन हररोज करते ही है, तो फिर इस अष्टमंगल का महत्त्व लौकिक है कि लोकोत्तर ? जैनेतरों में आठों मंगल का तो विधान दिखाई नहीं देता, दिखता है तो सिर्फ जैन आगम इत्यादि शास्त्रों में। ज्ञाताधर्मकथा इत्यादि अनेक अंगप्रविष्ट अंगबाह्य शास्त्रों में जगहजगह अष्टमंगल का अधिक वर्णन देखने को मिलता हैअष्टमंगल प्रासादिक है, दर्शनीय है, निर्मल है, जगमगाता है इत्यादि इत्यादि... उपरांत, श्राद्धविधि पढ़ते वक्त श्री दशार्णभद्र के द्रष्टान्त में अष्टमंगल प्रविभक्तिचित्र नाम के नाटक का उल्लेख देखने को मिला, बहुत आश्चर्य हुआ। इस अष्टमंगल की महिमा जाननेसमज़ने की अति जिज्ञासा दिल में अंगड़ाई ले रही थी। क्या होगा यह अष्टमंगल? इसके दर्शन से क्या लाभ? इत्यादि...इत्यादि... प्रस्तुत पुस्तिका का अचूक, शास्त्र विहित लेखन करने वाले मुनिराज श्री सौम्यरत्न विजयजी के प्रति अपना आभार प्रकट करते है। उन्होंने अनेक शास्त्र ग्रंथों का अवगाहन करके यह शोधनिबंध श्री संघ को भेंट में समर्पित किया है, जिनके द्वारा मेरे जैसे अनेक जिज्ञासुओं के ज्ञानकोश में जरूर मंगलवृद्धि होगी। शिवमस्तु सर्वजगतः। आ.वि. जयसुंदरसूरि द. अष्टमंगल प्रविभक्ति चित्र नाटक

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