Book Title: Ashtavakra Mahagita Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 11
________________ तब फिर कड़ी मिलेगी कहां? शृंखलाएं बंधेगी कहां? परंपरा भी जरूरी है, क्रांति भी जरूरी है। सब जरूरी है। संघर्ष सतत जारी रहना चाहिए। परंपरा समाप्त हो जायेगी तो क्रांति समाप्त हो जाएगी, तो सब कुछ नष्ट ओशो कहते हैं कि पुनराविष्कार जरूरी है, परंपरा चलती रहे, क्रांति भी चलती रहे, क्रांति और परंपरा वस्तुतः दोनों जारी रहें। ओशो कहते हैं-क्रांति हो, बने-मिटे; परंपरा हो, बने-मिटे लेकिन । जारी रहे, संघर्ष जारी रहे, सतत जारी रहे। यही क्रम जारी रहे, रुके नहीं। जैसे रात के बाद दिन और दिन के बाद रात, परंपरा के बाद क्रांति . और क्रांति के बाद परंपरा जारी रहना चाहिये। __ कभी न खतम होने वाला सफर, अनवरत चलने वाला सफर, पड़ाव नहीं। संघर्ष जारी रहे, खोज जारी रहे। ईश्वर है, नहीं, इस पर बहस नहीं। नास्तिक आस्तिक दोनों लड़ते रहेंगे, नास्तिक आस्तिक में बदल जायेगा, आस्तिक नास्तिक में बदल जायेगा, दोनों मूर्ख हैं। अष्टावक्र कहते हैं, दोनों मूर्ख हैं, खोज जारी है। ईश्वर है या नहीं इस पर बहस से कुछ नहीं होगा। नास्तिक आस्तिक दोनों लड़ते रहेंगे। नास्तिक आस्तिक में बदल जाएगा, आस्तिक नास्तिक में बदल जायेगा। ये हां और ना हमेशा बनी रहेगी। ओशो कहते हैं, न हां और न ना, बीच का रास्ता। बुद्ध की तरह “मध्यम व्यायोग"। और यहीं ओशो बुद्ध हो जाते हैं- "महाबुद्ध" - "इन्सान की बदबख्ती भी अंदाज से बाहर है कमबख्त खुदा होकर भी बंदा नजर आता है" बंगलाकवि चंडीदास ने भी तो यही कहा है"सबारे ऊपर मानुश सत्य तहारे ऊपर नाहीं सुनो रे मानुश भाई।" -संसार का सबसे बड़ा सत्य कोई है तो वह मनुष्य है। उससे ऊपर, उससे आगे, उसके पीछे, . उससे नीचे कुछ भी नहीं है, सुनो मनुष्यो। लेकिन कोई सुनने को भी तैयार नहीं। संपूर्ण महाभारत लिखने के बाद, वेद व्यास भी दोनों हाथ उठाकर चीखते रहे"सत्यमेव जयते नानृतृम" "सत्य की जीत होती है झूठ की नहीं।" और वेद व्यास अंततः हार कर चले गये, चीखते रहे, कोई सुनने वाला नहीं। ओशो ऐसे हार कर नहीं जाने वाले, वे थे नहीं—वे हैं। वे जाएंगे भी नहीं, प्यासों कुआं तुम्हारे पास आया है, इस कुएं को पकड़ लो, कुआं कहीं खाली हाथ न चला जाए, कुआं कहीं भरा का भरा न रह जाए, ओशो थे नहीं हैं। वे हैं "बंदापरवर मैं वो बंदा हूं जिसके आगे सिर झुका दूं वही खुदा हो जाए।" कहते हैं जनक के उत्तर से अष्टावक्र के आठों अंग का टेढ़ा-मेढ़ापन दूर हो गया था। विश्वास

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