Book Title: Anusandhan 2014 03 SrNo 63
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 154
________________ १४८ अनुसन्धान-६३ अनुपलब्ध है । जहाँ तक दिगम्बर परम्परा का प्रश्न है, उसमें भी बारहवे अङ्ग दृष्टिवाद के पाँच विभाग किये गये हैं। उसके परिकर्मविभाग के अन्तर्गत चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति और जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का उल्लेख मिलता है । इस प्रकार उपाङ्ग साहित्य के ये ग्रन्थ प्राचीन ही सिद्ध होते हैं । यद्यपि द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का उल्लेख स्थानाङ्गसूत्र और दिगम्बर परम्परा में दृष्टिवाद के परिकर्मविभाग में मिलता है, किन्तु उसे उपाङ्ग में अन्तर्भूत नही किया गया है । यद्यपि नन्दीसूत्र में अङ्गबाह्य ग्रन्थों के कालिक और उत्कालिक का जो भेद है, उसमें भी कालिकवर्ग के अन्तर्गत द्वीपसागरप्रज्ञप्ति का उल्लेख मिलता है । किन्तु नन्दीसूत्र के वर्गीकरण की यह एक विशेषता है कि उपाङ्गों में वह जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति को कालिक वर्ग के अन्तर्गत रखता है और सूर्यप्रज्ञप्ति को उत्कालिकवर्ग के अन्तर्गत रखता है । जहाँ तक उपाङ्गो के रूप में मान्य इन बारह ग्रन्थों का प्रश्न हैं इन सबका उल्लेख नन्दीसूत्र के कालिक और उत्कालिकवर्ग में मिल जाता है। उत्कालिकवर्ग के अन्तर्गत औपपातिक, राजप्रश्नीय, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना और सूर्यप्रज्ञप्ति ऐसे पाँच ग्रन्थों का उल्लेख हैं, जबकि कालिकवर्ग के अन्तर्गत जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, निरयावलिका, कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा का उल्लेख है। इस सन्दर्भ में विशेष रूप से दो बातें विचारणीय हैं - प्रथम तो यह कि इसमें निरयावलिका को तथा कल्पिका आदि पाँच ग्रन्थों को अलग-अलग माना गया है, जबकि वे निरयावलिका के ही विभाग हैं। इसी प्रकार चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति को दो अलग-अलग ग्रन्थ मानकर दो अलग-अलग वर्गों में वर्गीकृत किया है, जबकि उनकी विषय-वस्तु और मूलपाठ दोनों में समानता है । ऐसा क्यों हुआ इसका स्पष्ट उत्तर तो हमारे पास नहीं है, किन्तु ऐसा लगता है कि सूर्यप्रज्ञप्ति को ज्योतिषसम्बन्धी ग्रन्थों के साथ अलग कर दिया गया और चन्द्रप्रज्ञप्ति को लोकस्वरूपविवेचन ग्रन्थों जैसे द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के साथ रखा गया । वास्तविकता चाहे जो भी रही हो, किन्तु इतना निश्चित है कि उपाङ्ग वर्ग के अन्तर्गत जो बारह ग्रन्थ माने जाते हैं, उन सब का उल्लेख नन्दीसूत्र के वर्गीकरण में उपलब्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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