Book Title: Anusandhan 2014 03 SrNo 63
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
१६२
अनुसन्धान-६३
नाखवानी वात करे ओ शक्य छे ? उपरान्त, ग्यासुद्दीनना राज्यना नकद-उलमुल्क, शौल्किक अने खजानची ओम त्रणे होद्दा सङ्ग्राम सोनी पासे, ग्यासुद्दीन बादशाह बन्यो ते वर्षथी ज हता (केमके ग्यासुद्दीनना सत्तारोहणना वर्ष सं. १५२५मां रचायेली प्रशस्तिमां आ त्रणे होद्दानो निर्देश छे.) तो ओणे बादशाह पासे कामदारनो होद्दो मेळववानी शी जरूर ? आम समग्र दृष्टि विचारतां ओम जणाय छे के आ आंबावाळी वात लोलाडाना सङ्ग्रामनी ज छे. पण नामसाम्य, घटनामां माण्डवगढ अने ग्यासुद्दीननी हाजरी व ने लीधे प्रस्तुत सङ्ग्राम सोनी साथे जोडाई गई हशे.
* * *
हवे प्रस्तुत श्रीनेमीश्वरजिनप्रासादप्रशस्ति खरेखर जे कार्यने अनुलक्षीने रचाई छे ते जोईओ
—
ओक दिवस ब्राह्ममुहूर्तमां सङ्ग्रामने सज्जन दण्डनायक, वस्तुपाल मन्त्रीश्वर व. ने याद करतां भावना जागी के पोते पण अवां सुकृत्यो करे. तेणे आ भावनाने सार्थक करवा श्रीउज्जयन्तगिरि पर जिनालय बंधाववानो सङ्कल्प कर्यो. तेणे आ सङ्कल्पने पूर्ण करवा लोकोनी सलाह मुजब 'वीर' नामना पुरुषने विपुल धन अने साधन-सामग्री साथे जूनागढ मोकल्यो. सं. १५१८नी महा वद पांच जिनालय निर्माणनुं कार्य शरू थयुं. वीरे आ माटे रा' मण्डलिकने सन्तोषी तेनी पासेथी जग्या मेळवी हती, ज्यारे देवी अम्बिकाओ वरदानरूपे ओक मोटी शिला आपी हती. वीरे लखलूट धन खर्चीने सत्वरे विशाल जिनालयनुं निर्माण कराव्यं. मूलनायक श्रीनेमिनाथना बिम्ब माटे सङ्ग्रामे
मानी खाणमांथी 'ज्योतीरस' नामनी शिला मेळवी हती. जिनालयनी प्रतिष्ठा सं. १५२५नी वैशाख सुद छठे देवनिर्देश अनुसार खूब धामधूमपूर्वक सङ्ग्रामे करी. जिनालयनिर्माणनी आ प्रशस्ति श्रीरत्नसिंहसूरिना अन्तेवासी श्रीज्ञानसागरसूरिओ रची छे. (नेमि. प्र. श्लो. ९३ - १०८)
प्रतिष्ठाकारक आचार्य भगवन्तनुं नाम प्रशस्तिमां आप्युं नथी. प्रतिष्ठाकारक श्रीरत्नसिंहसूरिजी, श्रीउदयवल्लभसूरिजी के आ बन्नेना पट्टधर प्रशस्तिकारक ज्ञानसागरसूरिजी होई शके. पण जो रत्नसिंहसूरिजी के उदयवल्लभसूरिजी
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198