Book Title: Anusandhan 2014 03 SrNo 63
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 169
________________ जान्युआरी - २०१४ प्रतिष्ठाकारक होत तो ज्ञानसागरसूरिजीओ पोताना गुरुनां नाम अवश्य लख्यां होत. पण तेम नथी तेथी जणाय छे के भ. ज्ञानसागरसूरिजी पोते ज प्रतिष्ठाकारक हशे. प्रशस्तिकारे प्रशस्तिनुं रचनावर्ष जणाव्युं नथी, पण प्रतिष्ठाना वर्ष सं. १५२५मां ज प्रशस्तिनी रचना थई होय ओ बनवाजोग छे. सौथी वधु विचारवा जेवी वात मे छे के सङ्ग्राम सोनीले निर्माण करावेलुं श्रीनेमिनाथचैत्य गिरनार पर क्यां छे ? केम के आजे जे चैत्य सङ्ग्राम सोनीना देरासर तरीके ओळखाय छे ते खरेखर सोनी समरसिंह-मालदेओ बंधावेल छे, सङ्ग्रामे नहीं. (जुओ 'महातीर्थ उज्जयन्तगिरि', ले. मधुसूदन ढांकी, प्र. - शेठ आणंदजी कल्याणजी - अमदावाद, ई. १९९७) आ देरासरनी प्रतिष्ठा श्रीजिनकीर्तिसूरिजीओ सं. १४९४मां करेली छे. अटले सङ्ग्राम सोनीओ बंधावेल श्रीनेमिनाथचैत्यनी तपास करवी आवश्यक बने छे. * * * अनुसन्धान-६२मां प्रकाशित मण्डपीयसङ्घप्रशस्तिना घणाखरा श्लोको उपरनी प्रशस्तिमां पण मळे छे, जे सूचवे छे के आ प्रशस्ति पण भ. ज्ञानसागरसूरिजीओ ज सं. १५२५ पछी क्यारेक रची छे. प्रशस्तिने सग्राम सोनीना वंश साथे सम्बन्ध मे रीते छे के माण्डवगढना श्रीसङ्घने गिरनार पर सुकृत्य करवानी भावना सङ्ग्राम अने तेना काका-दादाना भाईओनी दानवीरता जोईने थई छे. सङ्घने आश्चर्य ए वाते थयुं के सङ्ग्राम अने तेना भाईओ पोतानां चैत्यो होवा छतां गिरनार पर विमलनाथना चैत्यमां (खम्भातना शाणराज अने संघवी भुंभवे बंधावेल शणगारवसही, प्रतिष्ठा सं. १५०९ - बृहत्तपागच्छीय श्रीजयतिलकसूरिशिष्य श्रीरत्नसिंहसूरिजी) विपुल धन खर्चे छे; आ चैत्यो बीजानां अने आ अमारां - अवो भेद राखता नथी. तो माण्डवगढनो सङ्घ शा माटे कोई सुकृत ना करे ? सङ्घनी आ भावना जाणी रत्नसिंहसूरिना पट्टधर उदयवल्लभसूरिओ गिरनार पर शाणवसही-विमलनाथ चैत्यमां मण्डपना निर्माणनी प्रेरणा करी. अने सङ्के आ प्रेरणाने झीली मण्डपर्नु निर्माण कराव्युं, तेनी आ प्रशस्ति रचवामां आवी छे. मूळे आ प्रशस्ति शिला पर कोतरवामां आवी हशे. पण हालमां तो ते Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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