Book Title: Anusandhan 2014 03 SrNo 63
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 159
________________ जान्युआरी - २०१४ १५३ पदों में जैन दर्शन के कुछ महत्त्वपूर्ण पक्षों जैसे - इन्द्रिय, संज्ञा, लेश्या, पर्याय, संज्ञा, कर्म, आहार, उपयोग, पश्यत्ता, समुद्घात आदि का गम्भीर विवेचन प्रस्तुत करता है । इस प्रकार ये दोनों उपाङ्ग मुख्यतः जैन दर्शन से सम्बन्धित है। प्रज्ञापनासूत्र में सर्वप्रथम चक्षुइन्द्रिय और मन को अप्राप्यकारी बताया गया है, जबकि श्रवणेन्द्रिय को बौद्धों के विपरीत प्राप्यकारी वर्ग में रखा गया है। इन्द्रियों के प्राप्यकारित्व और अप्राप्यकारित्व सम्बन्धी यह चर्चा सम्भवतः ईसा की प्रथम शताब्दी मे विकसित हुई । इस चर्चा के आधार पर कुछ लोगों का यह भी कहना है, कि प्रज्ञापना का रचनाकाल ईस्वी की प्रथम-द्वितीय शताब्दी से पहले नहीं हो सकता । यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि भगवतीसूत्र में स्थान-स्थान पर प्रज्ञापना का सन्दर्भ दिया गया है। इस आधार पर कुछ विद्वानों का यह भी कहना है कि भगवती का वर्तमान स्वरूप प्रज्ञापना से भी परवर्ती है, किन्तु हमारी दृष्टि में वास्तविकता यह है कि भगवतीसूत्र में विस्तारभय से बचने के लिए वल्लभीवाचना के समय उसे सम्पादित करते हुए प्रज्ञापना आदि का निर्देश किया गया है। इसके पश्चात् उपाङ्ग साहित्य में सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति का क्रम है, इन दोनों ग्रन्थों की विषयवस्तु लगभग समान है, और इनका विवेच्य विषय ज्योतिष से सम्बन्धित है । इनमें ग्रह, नक्षत्र, तारा तथा सूर्य-चन्द्र की गति का जो विवेचन मिलता है वह विवेचन वेदकालीन विवेचन से अधिक निकटता रखता है। ऐसा लगता है कि जैन आगमसाहित्य में ज्योतिष सम्बन्धी ग्रन्थ की परिपूर्ति के लिए इन ग्रन्थों का समावेश उपाङ्ग साहित्य में किया गया हैं । छठे उपाङ्ग के रूप में हमारे सामने जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का क्रम आता हैं । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का मुख्य विषय तो भूगोल है। इसमें जम्बूद्वीप के विभिन्न विभागों तथा खण्डों का तथा भरतक्षेत्र एवं ऐरावत क्षेत्र में होने वाले उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी काल का विवेचन है, किन्तु प्रकारान्तर से इसमें भरत चक्रवर्ती और ऋषभदेव के जीवनचरित्र का भी विस्तृत उल्लेख उपलब्ध होता है । सम्भवतः अर्धमागधी आगम साहित्य में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ही एक ऐसा ग्रन्थ है, जो भरत चक्रवर्ती और ऋषभदेव के जीवनवृत्त का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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