Book Title: Anusandhan 2014 03 SrNo 63
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जान्युआरी - २०१४
१५९
विशेषण वपरायुं छे, जे सूचवे छे के आ श्राविकाओ आचार्यपदवीना महोत्सवमां घणुं धन खयुं हशे.
९. आ नागड ब्रह्मचारी हतो, तेथी तेनो वंश आगळ वध्यो न हतो. (नेमि. प्र. श्लो. ३९)
१०. व्याधे पिता डुङ्गरना धनना बळे जीरापल्ली(-जीरावला)मां अग्रेसरत्व मेळव्युं हतुं. (नेमि. प्र. श्लो. ५०)
११. देवाओ बधा तीर्थोमां सङ्घनायकपद मेळव्युं हतुं. तेणे पोताना धनथी जिनालय अने पौषधशाला पण बंधाव्यां हतां. (नेमि. प्र. श्लो. ४१-४२). अने यात्रामार्गमा परब बंधाववाने लीधे 'शर्करासुकाल' अq बिरुद मळ्युं हतुं. (मण्ड. प्र. श्लो. २३)
१२. देवाना आ चारे पुत्रोओ उपाध्यायपद अपाव्यानो यश मेळव्यो हतो. गोधाओ जिनालय तथा धर्मशाला बंधाव्यां हतां. सहस्रकिरणे सकल श्रीसङ्घने वस्त्रोनी पहेरामणी करी हती. (नेमि. प्र. श्लो.. ४४-४६)
१३. सूबा दिलावरखांना पुत्र हुसंगशाह गोरीओ सं. १४५९मां माण्डवगढमां स्वतन्त्र गादी स्थापन करी. (नेमि. प्र. श्लो. ५६) ते सं. १४९१मां मृत्यु पाम्यो. त्यारबाद महमंद खिलजी (अपर नाम - आलमशाह गोरी) त्यांनो राजा (सं. १४९२-सं. १५२५) बन्यो. सङ्ग्राम सोनी आ राजानो खजानची/मन्त्रीश्वर हतो. पण उपरोक्त राजपरिवार साथे सङ्ग्राम सोनीना पूर्वजोथी सम्बन्ध चाल्यो आवतो हतो ते दर्शावतां प्रशस्तिकार (नेमि. प्र. श्लो. ५९-६३) जणावे छे के हुसंगशाह ओक वखत कोईक कारणसर बहार फरवा नीकळ्यो हतो त्यारे कोईक उत्सव निमित्ते नीकळेला वरघोडामा पहेलां ढोल बजावनार चण्डालो, पछी स्त्रीओ अने तेमनी पाछळ चालता पुरुषोने तेणे जोया. अटले तेणे खोजू मलिक ने पूछ्युं के आवं विपरीत वर्तन आ लोको केम करे छे? जवाब मळ्यो के आ लोको विवेकी नथी, माटे पोताने त्यां जे चाल्युं आवे छे ते प्रमाणे कर्या करे छे. आ सांभळीने बादशाहे कडं के तो पछी बहारथी कोईक विवेकी मनुष्यने बोलावीने आपणा देशमां पधरावो, जेथी तेना सत्सङ्गे आ लोको विवेकी बने. तेथी खोजू मलिके खम्भातना वृद्ध श्रेष्ठी नरदेवने कुटुम्बसहित बोलावीने पोताने त्यां स्थाप्या. अवसरे खोजू मलिक द्वारा हुसंगशाहनो नरदेव
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