Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 214
________________ १९४ अनुसन्धान - ६० : विज्ञप्तिपत्र - विशेषाङ्क शाखा के आचार्यों की कृति मानता हूँ । इनके अतिरिक्त आचार्य कुन्दकुन्द के ग्रन्थ समयसार, नियमसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकायसार, अष्टपाहुड, दसभक्ति आदि ग्रन्थों को भी आगमतुल्य ही माना जाता है । इनके साथ ही यतिवृषभकृत तिलोयपन्नत्ति, प्रभाचन्द्रकृत द्रव्यसंग्रह, कुन्दकुन्द कृत बारस अणुवेक्खा, कार्तिकयानुप्रेक्षा आदि भी दिगम्बर परम्परा में रचित प्राकृत के महत्त्वपूर्ण आगम स्थानीय ग्रन्थ है । दिगम्बरों में प्राकृतभाषा में मौलिक ग्रन्थ लिखने की यह परम्परा पूर्व मध्यकाल और मध्यकाल में भी यथावत् जीवित रही है । लगभग १०वीं शती में चामुण्डराय ने गोम्मट्टसार नामक ग्रन्थ के दो खण्ड जीवकाण्ड और कर्मकाण्ड, जो मूलतः कर्मसिद्धान्त से सम्बन्धित है, प्राकृतभाषा में ही लिखे है । इसी प्रकार १२वीं शती में वसुनन्दी ने श्रावकाचार और १४वीं शती में भट्टारक पद्मनन्दी ने 'धम्मरसायण' नामक ग्रन्थ भी प्राकृतभाषा में लिखें। इसके पूर्व भी अंगपण्णत्ति आदि कुछ प्राकृत ग्रन्थ दिगम्बर आचार्यो द्वारा लिखे गये थे । यद्यपि दिगम्बर परम्परा में प्राकृतग्रन्थो की भाषा मुख्यतः शौरसेनी प्राकृत ही रही है, फिर भी वसुनन्दी के श्रावकाचार और भट्टारक पद्मनन्दी के धर्मरसायण की भाषा महाराष्ट्री प्राकृत देखी जाती है । ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर आचार्यों ने अर्धमागधी और मुख्यतः महाराष्ट्री प्राकृत को अपनी लेखनी का विषय बनाया । उपरोक्त ग्रन्थो के साथ ही जैन कर्मसाहित्य का पंचसंग्रह नामक ग्रन्थ भी प्राकृत भाषा में उपलब्ध है। ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं में प्राकृत भाषा निबद्ध पंचसंग्रह उपलब्ध है । यद्यपि दिगम्बर परम्परा में संस्कृत भाषा में भी पंचसंग्रह नामक ग्रन्थ मिलता है । श्वेताम्बर परम्परा में प्राचीन कम्मपयड़ी आदि और देवेन्द्रसूरि रचित नवीन पांच कर्मग्रन्थ भी प्राकृत में ही रचित है । आगमिक व्याख्या साहित्य Jain Education International - आगमों के पश्चात् प्राकृत साहित्य की रचना के क्रम की दृष्टि से आगमिक व्याख्याओं का क्रम आता है । इनमें नियुक्तियाँ प्राचीनतम है । रचना-काल की अपेक्षा निर्युक्तियाँ आर्यभद्र की रचनाएँ है और उनका रचना काल ईस्वीसन् की प्रथम या द्वितीय शती के बाद का नहीं हो सकता है । यद्यपि सभी महत्त्वपूर्ण आगमग्रन्थों पर नियुक्तियाँ नही लिखी गई है । आगम For Private & Personal Use Only खण्ड १ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244