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जान्युआरी - २०१३
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कराववानी जहेमत लीधी हती. ते पछी भायाणीसाहेब तथा श्रीरमणीकभाई शाहे आनुं सम्पादन हाथ पर लीधुं. आ महाकाय ग्रन्थनी उपलब्ध हस्तप्रतोमां अपरम्पार अशुद्धि होवाना कारणे सम्पादनकार्य मुश्केल बनी रह्यं अने ३० वर्ष सुधी ग्रन्थ पड्यो रह्यो. भायाणी साहेब जतां आ सम्पादननो भार रमणीकभाई पर आव्यो. अनेक कार्योना भार वच्चे तेओ, वृद्ध उम्मरे पण, संशोधनकार्य आगळ वधारता रह्या, परन्तु कार्यने पहोंची वळवा, तेमना माटे मुश्केल बनी रह्यु. आ तबक्के ग्रन्थनी नियतिए जाणे आ. शीलचन्द्रसूरिने प्रेरणा करी. एमणे आ काम मागी लीधुं अने पोताना शिष्य कल्याणकीर्तिविजयजीना खभा पर आनो भार नाख्यो. कल्याणकीर्तिविजयजीए आ आह्वान स्वीकारी लीधुं. अंग्रेजीमां कहीए तो He rose to the occassion - खरे टाणे आगळ आव्या.
प्राकृत भाषा, जैन इतिहास अने जैन कथासाहित्यना पर्याप्त परिचय विना आ ग्रन्थ, सम्पादन थई शके नहि. मूल ताडपत्रीय प्रतमां पगले पगले भ्रष्ट अने अशुद्ध पाठ के त्रुटित पाठोनी भरमार छे. सम्पादक मुनिश्रीए पोताना संस्कृत-प्राकृतना सघन अभ्यास, कथासाहित्य, विपुल वांचन अने सम्पादनपद्धतिनो महावरो - आ बधुं कामे लगाडी, अति श्रमसाध्य एवं आ काम आगळ धपाव्युं छे. वस्तुतः ग्रन्थने नवो अवतार मळ्यो छे. आम आ . दुर्लभ ग्रन्थनो इतिहास शोकान्तिकाने बदले सुखान्तिकामां परिणम्यो छे. जैनविद्या तथा भारतीयविद्याना प्रेमीओ माटे आ घटना राजी राजी करी मूके एवी छे. ___'कहावली'ना रचयिता भद्रेश्वरसूरिनो समय निश्चित करवा माटे विद्वानोए घणो ऊहापोह को छे, परन्तु निर्णय पर आवी शक्या नथी. भद्रेश्वर नाम धरावता आठ जेटला आचार्योना उल्लेखो मळे छे. 'भद्रेश्वरगच्छ' एवा नामनो एक गच्छ पण हतो. ढांकी साहेब जेवा तज्ज्ञो 'कहावली'नो रचनासमय इसवीसनना दसमा सैकानो सूचवे छे..
भगवान ऋषभदेवथी लई हरिभद्रसूरि सुधीनी कथाओ प्रथम परिच्छेदमां गूंथी लेवाई छे. बीजो परिच्छेद अप्राप्त छे. बीजा परिच्छेदमां दशमा सैका सुधीनी कथाओ के चरित्रो संकलित हशे एवं अनुमान थाय छे. ग्रन्थकारे नूतन
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