Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 240
________________ २२० अनुसन्धान-६० : विज्ञप्तिपत्र-विशेषाङ्क - खण्ड १ तेनुं खरुं रहस्य, ते सर्जकोनुं वलण, 'पोते ज साचा, अन्य खोटा ज' एवं दिग्विजयी न होवामां हतुं, एम नक्की मानी शकाय. स्याद्वादनी प्ररूपणामां अन्तिम सत्य, “तत्त्वं तु केवलिनो बहुश्रुता वा विदन्ति" ए सूत्र द्वारा ज प्रगट अने प्राप्त थतुं होय छे. तेमां पोताना मतने खोटो ठरावनारने के भिन्न मत धरावनारने, अछाजती भाषाथी ऊतारी पाडवानी प्रवृत्ति नथी होती. अभद्र भाषा तो सत्यने पण असत्य के अयोग्य ठरावी शके, ए शक्यता भूलवा जेवी नथी. "वादे वादे जायते तत्त्वबोधः" ए संस्कृत पुरातन सूत्र- आधुनिक गुजराती रूपान्तर, रमूजमां, आq थई शके : "वादे वादे जाय ते तत्त्वबोध". स्याद्वादना अगाध महासागरमां डूबकी मारवा के तरवा-ऊंडा ऊतरवा इच्छनारने आवी रमूजना भोग बनवू केम पालवे ? बे बौद्धिको वच्चे तन्दुरस्त बौद्धिक के तार्किक युद्ध/चर्चा चालत तो 'अनुसन्धान' ते बन्नेना वादोने अवश्य आवकारत. भिन्न पण प्रामाणिक मत/ मन्तव्यनो 'अनुसन्धाने' कदी इन्कार कर्यो नथी. परन्तु तिरस्कारभर्यां वचनो द्वारा, युक्ति-तर्कविहोणी प्रतिक्रिया व्यथित कर्या विना न रहे. तेथी मध्यस्थ प्रबुद्ध जनने विनन्ति करी के बेय पक्षोना लेख तपासो, अने अमां जे पण पक्ष ज्यां पण चूकतो होय ते असन्दिग्धपणे कहो. कोईनी पण भूल हशे, 'अनुसन्धान' तेने सद्भावपूर्वक छापशे. उपाध्याय भुवनचन्द्रजी जेवा प्रबुद्ध दार्शनिक चिन्तक मुनिवरे आ विनन्ति स्वीकारी, समग्रपणे बधुं अवगाहीने आपेलो निष्कर्ष अत्रे प्रस्तुत थयो छे. आम करवा पाछळ कोईनीये लागणी दूभववानो के कोईने परास्त करवानो आशय नथी, ते तो स्वयं वाचको ज प्रमाणी शकशे. - शी० 'अनुसन्धान' तेने सजावर आ विनन्ति स्वीकारी, समा9 कोईनीये लाग -x Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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