Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 229
________________ जान्युआरी - २०१३ विहंगावलोकन उपा. भुवनचन्द्र अनुसन्धान-५९मां स्तोत्र, स्तवन, भास, गहूंली, प्रश्नमाला, तर्क, कूटकाव्य, एम विषय अने भाषानुं वैविध्य स्थान पाम्युं छे. २०९ संशोधनलेख 'करहेटक पार्श्वनाथ स्तव'नी प्रथम पंक्तिमां 'भन्द'ने स्थाने 'कन्द' एवो सुधारो सम्पादके सूचव्यो छे परन्तु ' भन्द' अशुद्ध पाठ नथी, तेथी एवा सुधारानी आवश्यकता नथी. संस्कृत 'भद्र' प्राकृत - अपभ्रंशमां 'भंद' बन्यो अने पछीथी संस्कृतमां पण स्वीकृत थयो. आथी 'आनन्दभन्द... ' पाठ ठीक ज छे. वळी, ‘आनन्दना कन्द रूपी कुमुदो...' एवी कल्पना काव्यशास्त्रविरुद्ध गणाय. 'आनन्द अने भद्र रूपी कुमुदो' चाली शके अन्तिम पंक्तिमां 'मे स धीरम्' छे, त्यां 'मेरुधीरम्' वांचवं जोइतुं हतुं कर्तानुं नाम पण आमां संकेतित थाय छे. 'वीस विहरमाण स्तवन' अपभ्रंशनी निकटना समयनी रचना छे. सरल अने प्रसादगुणयुक्त आ कृति साहजिक यमक, वर्णानुप्रास, प्रास आदिथी कर्णमधुर बनी छे. क. १९मां 'जोइ सु' छे त्यां 'जोइसु' हशे. क. २२मां 'तिसंउ' छपायुं छे. अहीं 'तिसंझ' होवानी पूरी सम्भावना छे. 'स' उपरनो अनुस्वार पण सूचक छे. कीर्तिराज उपाध्यायनी रचना नेमिनाथ प्रभुना स्तवनरूप छे, पण कर्ताए ज्ञानपंचमी अने पांच पांच भेदयुक्त वस्तुओ साथे युक्तिपूर्वक सांकळीने कृतिने रसमय बनावी छे. आमां प्राकृत- अपभ्रंश अने गुजरातीनुं संमिश्रण छे ते नोंधवा जेवुं छे. अन्य लघु रचनाओ पण बौद्धिक चमत्कृतिवाळी छे. Jain Education International पूनमीआ गच्छना भावप्रभसूरिनी बे रचनाओ पाटणना एक मन्दिर विशे तथा दोशी परिवार विशे ऐतिहासिक माहिती आपी जाय छे. शुद्धप्राय: छे. अष्टकना चोथा श्लोकमां 'सत्प्रभावम्' छे त्यां लेखकदोष छे, अहीं 'सत्प्राभवम्' पाठ होवो जोइए, अने ए रीते वांचतां अर्थ पण बेसी जाय छे अने छन्ददोष पण नथी रहेतो. 'पाटणना चैत्यसम्बन्धी बे अप्रगट कृतिओ मां सम्पादको कृति सम्बन्धित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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