Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 230
________________ २१० अनुसन्धान-६० : विज्ञप्तिपत्र-विशेषाङ्क - खण्ड १ पूरक माहिती संकलित करी आपी छे. कवितमां 'आठबीडोतरै' छे तेनो अर्थ ८०२ ज थाय. आ संवत पाटणनी स्थापनानो छे. साह वीराए ढण्ढेरवाडामां वीरप्रभुनुं बिम्ब जो ८०२ मां स्थाप्यु होय तो तेजसी दोशी तेमनी चोथी पेढीए थयानी वात बेसे नहि. तेजसीनो संवत् १७७८ के १७७४ तो कर्ताए आप्यो ज छे. इन्द्रनन्दिसूरि विषयक लावण्यसमयरचित बे रचनाओ ऐतिहासिक मूल्य धरावे छे. प्रथम कृति विगतप्रधान छे, बीजी ऊर्मिप्रधान छे. बन्ने कृतिओनी गेयता ध्यान खेंचे छे. लावण्यसमयनी कृतिओमां शब्दसमृद्धि भरपूर होय छे; ते आ बन्ने कृतिओमां हाजर छे. प्रथम कृतिमां क. १८मां 'परि परि'नो अर्थ 'प्रकारे प्रकारे' 'अनेक रीते' एवो थाय. क. २६मां 'जंगमोयक्षर' एम छपायुं छे. अहीं 'जंग मोयक्षर' एम वांचवें जोइए : 'मण्डइ जङ्ग' एम वांचतां काव्यनो लय बेसे छे. 'मोयक्षर'मां वाचननी के लेखननी गरबड़ छे. क. २७मां अंते 'सत्वो' छे, पण प्रासने ध्यानमां लेतां अहीं 'सन्तो' शब्द अपेक्षित छे. क. ३०मां 'माडि' छे, त्यां 'कपड़ानी जोड़' अर्थ संभवे छे. कच्छीमां 'मड्ड' आजे पण 'कपड़ानी जोड़'ना अर्थमां प्रचलित छे. द्वितीय कृतिमां क. ८मांनो 'सइजल' शब्द ध्यान खेंचे छे. काठियावाड़ीमां 'पाणी'ना अर्थमां 'सेंजळ' शब्द छ जे हवे वीसरातो जाय छे. ___ 'गहूली'नी क. ३मां 'अबुकइ' छे त्यां झबुकइ होवू घटे. 'प्रश्नोत्तरवाक्य संग्रह' जेवी आधुनिक कही शकाय तेवी भाषा धरावती रचना 'अनुसन्धान'मां प्रगट करवाने पात्र खरी ? एवो प्रश्न थाय. बोधदायक रचना तरीके भले उपयोगी होय, परन्तु एमां संशोधन-अनुसन्धाननुं तत्त्व केटलुं ? संशोधन सामयिकमां आवी कृतिओने स्थान आपवानुं टाळवू जोइए एवं आ अवलोकनकारनुं मानवं छे. ____'केटलांक दार्शनिक प्रकरणो' नामे सम्पादित कृतिओ आ अंकनां घरेणां समान छे. सम्पादके परिश्रमपूर्वक रचनाओ सम्पादित करी छे, आवश्यक चर्चा पण करी छे. कृतिओ तर्क, वैदुष्यथी सभर तो छ ज, वीतेला युगमां शास्त्रार्थ समये जे व्यङ्गोक्तिओ, गर्वोक्तिओ, कटाक्ष, भाषानी भभक अने उग्रता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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