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अनुसन्धान-६० : विज्ञप्तिपत्र-विशेषाङ्क - खण्ड १
पत्रचर्चा
(१)
नागोर, दि. १५-११-२०१२ सम्पादकश्री,
अनुसन्धान-५५मां मुनिश्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजीनो 'सन्मतितर्क-गाथा १.४१ ना तात्पर्य विशे विचारणा' शीर्षक लेख प्रगट थयो छे, जे तेमना अन्य लेखोनी जेम तर्कमण्डित, तुलनात्मक चर्चासभर, नूतन उन्मेषथी समृद्ध छे. लेखमां चर्चित विषय जटिल अने सूक्ष्म छे, पण मुनिश्रीए एक एक बिन्दु स्पष्ट करता जई, सन्मतितर्कनी ए गाथामांथी ऊभा थता प्रश्ननी छणावट अति विशदताथी करी छे. लेख वांचनारने मुनिश्रीना स्वाध्याय अने सूक्ष्म बोधनी प्रतीति थया वगर न रहे.
ते पछी आ. श्रीअभयशेखरसूरिजीए बत्रीस बत्रीसीनी विवेचनाना छठ्ठा भागमां 'एक विशेष वात' एवा शीर्षक नीचे त्रैलोक्यमण्डनविजयजीना उपर्युक्त
१. आ. श्रीअभयशेखसूरिजीओ पोताना 'बत्रीशीना सथवारे० भाग-६' पुस्तकना अन्तिम पृष्ठमां करेली ते टिप्पणी अक्षरशः आ प्रमाणे छे -
एक विशेष वात.... आ भागमा अपुनर्बन्धक, सहज मळहास, सम्भूतिमुनिनुं अनशन... वगेरे अंगेनी केटलीक वातो अपूर्व लागवाथी कोईकने शास्त्रविपरीत लागे ओवी शक्यता छे. तेओने, में शास्त्रवचनोने अनुसरीने ज जे तर्को आपेला छे एमां कोई असंगति लागे तो जरूर जणाववा विनन्ती छे. बाकी पोते आज सुधी जे मानेलं-विचारेलु एना करतां अलग जोवा मात्रथी उत्सूत्रनुं लेबल न लगाडी देवानी नम्र भलामण छे.
वळी क्यारेक तो पोतानी क्षमता ज न होवा छतां चंचूपात करवानी वृत्ति जोवा मळे त्यारे दिल करुणासभर व्यथा अनुभवे छे. जेमके पू. शीलचन्द्रसूरि म. सम्पादित 'अनुसन्धान'मां मुनिराज श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजीओ, सप्तभङ्गीविशिका अने द्रव्यगुणपर्यायनो रास-विवेचनमां में करेली सप्तभङ्गी अंगेनी केटलीक रजूआत पर चर्चा करी छे.
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