Book Title: Anusandhan 2013 03 SrNo 60
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जान्युआरी - २०१३
२०७
मुनिश्रीनी सज्जतानी प्रतीति आ ग्रन्थ- सम्पादन करावी जाय छे. तेमनी सज्जताने जोतां एम लागे के जे स्थानो शंकास्पद रह्यां छे तेने पण तेओ शुद्ध करी शक्या होत – जो तेमने पूरतो समय मळ्यो होत. केटलांक स्थळे देखीतो सुधारो करवानो रही गयो छे अथवा भळतो सुधारो थवा पाम्यो छे. तेनुं कारण पण पुनरवलोकन माटे समय न मळवा पाम्यो होय ए ज हशे. केटलांक स्थळो पुनरवलोकन मागे छे. दा.त. पृ. ५७ पं. (नीचेथी) ५, 'मज्झं' छे त्यां 'गुज्झं' शब्द वधु संगत बने, पण सम्पादकना ध्यान बहार गयो छे. पृ. ९७, पं. (उपरथी) १०, 'परिभा(भ)वो' मां सुधारा द्वारा 'परिभवो' शब्द सूचित कर्यो छे, परंतु सन्दर्भ जोतां 'परियावो' अहीं बराबर बंध बेसे. पृ. १०८ उपर नीचेथी १६मी पंक्तिमां 'करेइ' पाठ छे. अहीं गाथा- चरण आम छ : 'उप्पइउणं पहारं करेइ अइदारुणं देइ'. सन्दर्भ एवो छे के महापद्मकुमार हाथीने वश करवा माटे जोरदार प्रहार करे छे; तेनी पासे शस्त्र नथी, तेथी हाथथी ज करे छे. एटले 'करेइ' जेवा अनावश्यक क्रियापदने स्थाने 'करेण' पाठ वधु सार्थक बने; पण आ स्थान सम्पादकना ध्यानमां नथी आव्युं. प्रतमां अशुद्ध पाठो अगणित छे, तेथी पुनर्वाचननी जरूर रहे ज. पृ. ३६८, पं. (नीचेथी) ८मां 'गंदित्ता'ने बदले 'छड्डित्ता' सुधारो कौंसमां सूचित कर्यो छे, परंतु वाक्यमां आनाथी पहेला 'वि' छे तेथी 'विर्गिदित्ता' वांची शकाय, अने तेमां 'विगिदि(चि)त्ता' एवो सुधारो सूचवी शकाय एम छे. मुनिश्रीनी भाषाकीय सज्जता जोतां आवा सुधारा तेमने सूझी ज आवत, परन्तु समय ओछो पड्यो होय एम लागे छे.
ग्रन्थनां पानां उथलावतां थोडांक परिमार्जन सूझ्यां ते पण पाठकोना लाभार्थे अहीं नोंधुं र्छ :
अशुद्ध १३८ (नीचेथी) ११ अहीं 'तंमि' एवा सुधारानी जरूर नथी;
तं वि जयं ते मुहं दिटुं - आ पाठ ठीक ज छे.
अर्थ थशे - तारुं मोढुं जोयुं ते ज (वधामणां छे). १९७ (उपरथी) ४ सव्वं(च्चं) सव्वं(त्त्थं) ११७ (नीचेथी) ४ ताय ! पयकमलं तायपयकमलं
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