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जान्युआरी - २०१३
१९७ सम्बोधप्रकरण प्रसिद्ध ही है। इसी प्रकार हरिभद्र का धूर्ताख्यान भी बहुत ही प्रसिद्ध ग्रन्थ है, किन्तु हम इसकी चर्चा प्राकृत कथा साहित्य में करेंगे। .
इसी क्रम में उपदेशपरक प्राकृत ग्रन्थों में हरिभद्र के सावयपण्णत्ति, पंचाशकप्रकरण, पंचसुत्त, पंचवत्थु, सन्बोधप्रकरण आदि भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । इसी क्रम में अन्य उपदेशात्मक ग्रन्थों में धम्मसंगहणी, संबोधसतरी, धर्मदासगणि की उपदेशमाला, खरतरगच्छीय आचार्य की, सोमप्रभ की उपदेशपुष्पमाला आदि भी प्रसिद्ध है। इसी क्रम में दिगम्बर परम्परा में देवसेन (१०वीं शती) के भावसंग्रह, दर्शनसार, आराधनासार, ज्ञानसार, सावयधम्मदोहा आदि भी प्राकृत की महत्त्वपूर्ण कृतियाँ है । • प्राकृत कथा साहित्य
यद्यपि आगमों में अनेक ग्रन्थ तो पूर्णत: कथारूप ही है, जैसे ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अनुत्तरौपपातिकदशा, अन्तकृत्दशा, विपाकसूत्र,
औपपातिकसूत्र, पर्युषणाकल्प आदि । जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति का कुछ अंश, जो ऋषभदेव, भरत आदि के चरित्र का वर्णन करता है, भी कथा रूप ही है। किन्तु इनके अतिरिक्त भी आगमिक व्याख्या साहित्य में विशेष रूप से नियुक्तियों, भाष्यों और चूर्णियों में भी अनेक कथाएँ है । पिण्डनियुक्ति, संवेगरंगशाला, आराधनापताका आदि में भी अनेक कथाओं के निर्देश या संकेत उपलब्ध है। विषयों का स्पष्टीकरण करने में, ये कथाएँ बहुत ही सार्थक सिद्ध होती है । इन उपदेशात्मक कथाओं के अतिरिक्त जैन आचार्यो ने अनेक आदर्श पुरुषों के जीवन चरित्रों पर स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखे हैं। इनमें तीर्थकरों और शलाका पुरुषों के चरित्र प्रमुख है । आगमों में भगवान महावीर आदि के जीवन के कुछ प्रसंग ही चित्रित है । तीर्थकरों एवं अन्य शलाका पुरुषों के चरित्र को लेकर, जो प्राकृत भाषा में स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे गये, उनमें सर्वप्रथम विमलसूरि के 'पउमचरियं' की रचना हुई है । रामकथा के सन्दर्भ में वाल्मिकी की संस्कृत भाषा में निबद्ध 'रामायण' के पश्चात् प्राकृत भाषा में रचित यही एक प्रथम ग्रन्थ है। यह महाराष्ट्री प्राकृत में निबद्ध है। इसका रचनाकाल ईसा की दूसरी शती से पांचवी शती के मध्य माना जाता है । इसके पश्चात् प्राकृत भाषा के कथाग्रन्थों में संघदासगणि कृत .
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