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अनुसन्धान-६० : विज्ञप्तिपत्र-विशेषाङ्क - खण्ड १
भी मूलतः प्राकृत भाषा में रचित हैं, साथ ही यह भी ज्ञातव्य है कि नियुक्ति
और भाष्य दोनों पद्यात्मक है । जबकि कालान्तर में इन पर लिखी गई चूर्णियाँ प्राकृत-संस्कृत मिश्रित भाषा में गद्य में लिखी गई है । फिर भी चूर्णियों की भाषा पर प्राकृत का बाहुल्य है । भाष्यों का रचनाकाल ६-७ शती के लगभग है, यद्यपि कुछ भाष्य परवर्ती भी है। चूर्णियां ७वीं-८वीं शती के मध्य लिखी गई । चूर्णियों में निशीथचूर्णि सबसे महत्त्वपूर्ण और विशाल है । यह अपने मूलस्वरूप में चार खण्डों में प्रकाशित है। इसके साथ ही आवश्यकचूर्णि भी अति महत्त्वपूर्ण है, यह भी अपने विशाल आकार में मूल मात्र ही दो खण्डों में पूर्व में मुद्रित हुई थी, किन्तु वर्तमान में प्राय: अनुपलब्ध है । इनके अतिरिक्त अन्य चूर्णियाँ निम्न है- आचाराङ्गचूर्णि, उत्तराध्ययनचूर्णि, दशवैकालिकचूर्णि, सूत्रकृताङ्गचूर्णि, जीतकल्पचूर्णि, नन्दीचूर्णि आदि । इनमें से नन्दीचूर्णि एवं सूत्रकृताङ्गचूर्णि का प्रथम खण्ड भी प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी से प्रकाशित है। आज इन चूर्णियों के हिन्दी अनुवाद की महती आवश्यकता
चूर्णियों के पश्चात् आगम साहित्य पर टीकाएँ भी लिखी गई हैं। टीकाएँ प्रायः संस्कृत में है । टीकाकारों में हरिभद्र, शीलांक, अभयदेव, मलयगिरि आदि प्रसिद्ध है। किन्तु इन टीकाओं में शान्तिसूरि की उत्तराध्ययन की पाइअ टीका (प्रायः नवीं शती) अति प्राचीन एवं प्रसिद्ध है और जो मूलतः प्राकृत भाषा में ही निबद्ध है । यह लगभग सौ वर्ष पूर्व दो खण्डों में प्रकाशित है । टीकाओं में यही एक ऐसी टीका है, जो प्राकृत भाषा में लिखित है। प्राकृत के स्वतन्त्र ग्रन्थ
नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि और टीकाओं के साथ ही पूर्व मध्यकाल में प्राकृत भाषा में अनेक आगमिक विषयो पर स्वतन्त्र ग्रन्थ भी लिखे गये । इनमें भी जीवसमास, लोकविभाग, पक्खीसूत्र, संग्रहणीसूत्र, क्षेत्रसमास, अंगपण्णत्ति, अंगविज्जा आदि प्रमुख है । इसी क्रम में ध्यानसाधना से सम्बन्धित जिनभद्रगणि का झाणज्झयण अपरनाम ध्यानशतक (ईसा की ६ठी शती) भी प्रकाश में आया । हरिभद्र के प्राकृत योग ग्रन्थों में योगविंशिका, योगशतक,
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