Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 37
________________ ३२ अनुसन्धान ४७ हरखें पहिरै हार सुंदरि सजनी सिणगार हो सुणि० । राजानौ मन रं0 गुण अधिकी. कुण गं0 हो सुणि० ॥६॥ इक दिन तूटौ हार मृत पामैं सांधणहार हो सुणि० । राजा पहड दिरावैं सांधैं ते लख धन पावें हो सुणि० ॥७॥ वात सुणी मणिहारै मन माहे एम विचार हो सुणि० । हुं निरधन वृद्ध देह परिवारनैं भूख अछेह हो सुणि० ॥८॥ लाख दर बक्षौ होई तौ मूंआं दुख नही कोई हो सुणि० । जीवित माहरौ जासी पिण पाछला सोहरा थासी हो सुणि० ॥९॥ अधलख पहिली लीधौ ते हार सांधीनें लीधौ हो सुणि० । तिण वेला ते मूऔ तिणहिज पुर वानर हूऔ हो सुणि० ॥१०॥ फिरतौ निज घर आयौ तिहां जातीस्मरण पायौ हो सुणि० । बेटा आगलि आवै लिखि अक्षर वात जणावें हो सुणि० ॥११॥ बाकी मुझ अधलाख नृप दीधौ कैं नही दाख हो सुणि० । सुत कहैं तुं मूऔ तात अम्हनैं कुण पूछ वात हो सुणि० ॥१२॥ अम्हनैं न दीयें राय करि तुंहि ज कोइ उपाय हो सुणि० । रूठौ वानर तेह जोवै छलछिद्र अछेह हो सुणि० ॥१३॥ किणही विधि ल्युं हार इम चिरौं लैंण प्रकार हो सुणि० । एक दिन चेलणा राणी जलक्रीडा कारण जाणी हो सुणि० ॥१४॥ खू? मूंक्यौ हार ले नाठौ कपि तिण वार हो सुणि० । आणी सुतनैं दीधौ कपि आपणौ कारिज कीधौ हो सुणि० ॥१५॥ हार न लार्भे राणी अधिकी दिलगीरी आणी हो सुणि० । राजा खबर करावें पिण किहां ही हार न पावें हो सुणि० ॥१६॥ दोहातेडी अभयकुमारनें हुकम करें नरनाह । किहांहिक हार करौं प्रगट सात दिवसां माहि ॥१॥ नहीतौ तुं पामिसि सजा करि तुं हुकम प्रमाण । खबर करंतां नगरमैं दिन षट हूआ जाण ॥२॥ हार किहां लाधौ नही चिंतें अभयकुमार । आठमिरौ दिन आज ल्युं पोसौ सुविचार ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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