Book Title: Anusandhan 2009 00 SrNo 47
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ मार्च २००९ सुगुण नर जे छोडइ तेह सुजाण चतुर नर धन अनरथनी खाणि ||१|| आंचली । नौली ऊंची मुंकिनैं रे सरवर तट बिहुं साथ | वडौ स्नान पहिली करै रे लघु ौं पूठें हाथ सगुण० धन० ॥२॥ वृद्ध जाणै मैं लघु भणी रे आणी मारण बुद्धि । लघुभाई तौ माहरी रे सेव करें छें शुद्ध सुगुण० धन० ॥३॥ बोल्यौ सरल मनैं करी रे सुणि माहरा लघुभ्रात । काल्हे मुझ उपजी हुती रे तुझ मारणरी वात सुगुण० धन० ॥४॥ साजन वालंभ तुं सही रे पूरव पुण्यै लाध । मैं मन अनरथ आणीयौ रे तुं खमिजे अपराध सुगुण० धन० ||५|| मोनें पिण लहुडौ कहैं रे उपनीथी मति आज । नौली कडि बांध्यां पछें रे कहतां आवैं लाज सुगुण० धन० ||६|| बेहुं कहैं ए पापनौ रे मेल्यौ आंपे माल । जौ ए घरि ले जावसां रे तौ होसी केई जंजालसुगुण० धन० ॥७॥ नौली नांखौ झालिनैं रे परही पांणी मांहि । ३५ केई दरव कमावसां रे जौ ठां कुशल उछाह सुगुण० धन० ॥८॥ कहौ ते धन किण कामरौ रे अनरथ हवैं जिण नेट । सुगुण० धन० ॥९॥ हेम छुरी हैं हाथमैं रे कोई न मारैं पेट बेहुं भाई संबाहिनै रे नौली नांखी नीर । बाकौ फाडि बैंगै हुतौ रे मगरमच्छ तिहां तीर सगुण० धन० ॥ १०॥ उदरमैं तिणरैं ऊतरी रे ते नौली तिण वार । चित चौखै बेहुं चालिनैं रे आया निज घरबार सगुण० धन० ॥ ११ ॥ माता बहिन हुती मिल्या रे हूआ हरखित प्रधान । खांड घिरत आणि खांतिसुं रे प्रघल कीया पकवान सगुण० धन० ॥ १२॥ हिव तिण सरवर जायनैं रे धीवर नांख्यौ जाल । नौलीवालौ माछलौ रे माहि आयौ तिण काल सगुण० धन० ॥१३॥ चौहाटामा मांडीयौ रे वेचणनैं तिणवार । माता तिणवेला कहैं रे पुत्रीनैं धरि प्यार बेहुं बेटा कारण रे कीधा हैं पकवान । Jain Education International सगुण० धन० ॥१४॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86